________________
वस्तुपाल-तेजपाल
हम लिख आये हैं कि गांधार से लेकर सिंधु- सौवीर, तथा कुरुक्षेत्र तक सारे पंजाब जनपद में प्रति प्राचीनकाल से जैनधर्म का प्रसार चला श्रा रहा है । सम्राट सम्प्रति के समय में आर्य सुहस्ति, उनके शिष्य श्रार्य सुस्थित, उन के शिष्य प्रार्य सुप्रतिबद्ध, उन के शिष्य आर्य दिन्न आदि विद्यमान थे । इन के शिष्य-प्रशिष्य तथा ये स्वयं भी पंजाब जनपद में सर्वत्र विचरते रहे । २. युद्धवीर और धर्मवीर महामात्य वस्तुपाल- तेजपाल
ने
महामात्य वस्तुपाल- तेजपाल (वि० सं० १२७५ से १३०३) दोनों सगे भाई थे । ये दोनों प्राग्वाट ( पोरवाल ) महाजन वंश के नररत्न थे । उस समय धोलका के राजा वीरधवल ने वस्तुपाल को अपने राज्य का महामंत्री बनाया और तेजपाल को सेनापति का पद दिया । तथा राज्य का सारा कारोबार इन दोनों भाइयों को सौंप दिया । राज्यभार संभालने से पहले कुछ शर्तें रखीं - १. जहाँ अन्याय होगा वहाँ हम ज़रा भी भाग न लेंगे । २. जितना काम ज़रूरी क्यों न हो किन्तु देव गुरु की सेवा से हम लोग कभी न चूकेंगे । ३. राज्य सेवा करते हुए यदि कोई आप से हमारी चुगली करे श्रौर उसके कारण हमें राज्य छोड़कर जाने का मौका प्रावे तो भी हमारे पास जो इस समय तीस लाख रुपये का धन है, वह हमारे ही पास रहने देना होगा । राजा ने अपने राजपुरोहित सोमेश्वर की साक्षी में तुम लोगों की सब शर्ते मंजूर हैं । तब इन दोनों भाइयों ने राजा के स्वीकार किया ।
वचन दे दिया कि मुझे वहाँ रहकर सेवा करना
२७७
वस्तुपाल- तेजपाल श्वेतांबर जैनधर्मी थे । इनके पिता आशराज भी राजा वीरधवल के एक मंत्री थे । इन की माता का नाम कुमारदेवी था । ये दोनों भाई दृढ़ जैनधर्मी थे । वस्तुपाल की पत्नी का नाम ललिता तथा तेजपाल की पत्नी का नाम अनुपमा था ।
जिस समय वस्तुपाल महामंत्री बने उस समय न तो राजा के खजाने में धन था और न राज्य में न्याय । अधिकारी लोग बहुत ज्यादा रिश्वतें खाते और राज्य प्राय अपनी जेब में रख लेते । वस्तुपाल ने महामंत्री का कार्यभार संभालते ही यह सब अव्यवस्था दूर की । खजाने में बहुत सा धन ग्राने लगा । उस आय से शक्तिशाली सेना तैयार की और कुछ दिनों के लिये राज्य का सारा कारोबार तेजपाल को सौंप दिया। स्वयं राजा के साथ सेना लेकर चल पड़ा जिन-जिन जिमींदारों ने राज्य का कर देना बन्द कर दिया था उन से सब रकम वसूल की । जिन जागीरदारों ने किश्तें देना बन्द कर दी थीं, उन से भी पिछली बकाया रकमें वसूल कर लीं । इस तरह सारे राज्य में फिर कर उसने राज्य का खजाना भर दिया और सब जगह शांति तथा व्यवस्था कायम की ।
Jain Education International
राजा से इन्हों राज्य का चाहे
फिर वस्तुपाल ने शक्तिशाली सेना के साथ जो शत्रु राजा सिर उठाये हुए थे, उन्हें वश में करने के लिये प्रस्थान कर दिया । सब को वश में करने के पश्चात् वस्तुपाल गिरिनार पर्वत पर गये और वहाँ बाइसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के मंदिर की भक्तिभाव पूर्वक यात्रा की । सेनापति तेजपाल ने भी युद्ध करके कई विजय प्राप्त कीं ।
सांगण, चामुंड, वनथली के राजा, भद्रेश्वर का राणा भीमसिंह, गोधरा का राजा धुधुल आदि अनेक राजाओं को वस्तुपाल और तेजपाल ने युद्ध में हराकर राज्य का विस्तार किया और सरकारी खजाना धन से भरपूर कर दिया ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org