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सिरहंद
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अधिष्टात्री भी है । सिरहंद के इस मंदिर में श्री चक्रेश्वरीदेवी की प्रतिमा विराजमान है। इस देवी को खंडेलवाल जैनजाति के ८४ गोत्रों में से जो चौहान राजपूतों से जैनी बनाये गये। वेसब, १५ गोत्र अपनी इसे अपनी कुलदेवी मानते हैं। उन गोत्रों के नाम ये हैं--१. साह २. पापड़ीवाल, ३. सेठी, ४. वरडोद्या, ५. गदइया, ६. पाहाड़या, ७. पाद्यड़ा, ८. पांपुलिया ६, भूलाण्या, १०. पीपलया, ११. वनमाली, १२. अरड़क, १३. चिरडक्या, १४. साँभर्मा तथ १५. चौनाया।
कहते हैं कि महाराजा-पृथ्वीराज चौहान के समम में जयपुर से खंडेलवाल जैनों का एक काफ़िला पंजाब में आया। उसकी कुलदेवी चक्रेश्वरी माता थी। इसलिये वह उसकी एक प्रतिमा को साथ में लाया। जब वह काफ़िला सिरहंद पहुंचा तो देवी की प्रतिमावाली बैलगाड़ी कीचड़ में फंस गई। बहुत उपाय करने पर भी कीचड़ में से बैलगाड़ी न निकल पाई। तब काफिले के लोगों ने इस स्थान पर मंदिर बनवाकर इस चक्रेश्वरीदेवी की प्रतिमा को उसमें विराजमान करदिया ।
मुगल बादशाह औरंगजेब के समय सिरहंद का सूबेदार बाजदखां बहुत अत्याचारी और कट्टर मुसलमान था । उस ने इसी सिरहंद में सिखों के दसवें गुरु श्री गोविन्द सिंह जी के दो पुत्रों को जीवित ही दीवाल में चिनवा दिया था। ईस्वी सन् १७५७ (वि० सं० १८१४) में पटियाला के महाराजा को श्री गोविन्दसिंह जी ने स्वप्न दिया कि जहाँ श्री गोविन्दसिंह जी के दोनों पुत्रों का दाह संस्कार किया गया है, वहाँ गुरुद्वारा बनाया जाये। उस समय यहां इस चक्रेश्वरीदेवी क मंदिर मौजद था। इस मंदिर से दाह संस्कार वाले स्थान के फासले (अन्तर) का हिसाब लगाकर उस स्थान का पता लगा लिया गया और वहीं उन दोनों पुत्रों की यादगार में ज्योतिस्वरूप गरुद्वारे का निर्माण किया गया। जिस किले की दीवार में उन्हें चिनवाया गया था वहां फतेहगढ़ साहब के नाम से गुरुद्वारे का निर्माण हुआ।
___ यहां के इस चक्रेश्वरीदेवी के मंदिर के जीर्णोद्धार तथा विस्तार की योजना पंजाब के मूर्तिपूजक श्वेतांबर जैनसंघ की तरफ से चालू है । यहाँ जैनों की वस्ती बिलकुल नहीं है ।
सारे पंजाब में जो खंडेलवाल लोग आबाद हैं, वे सब जैन श्वेतांबर धर्मानुयायी हैं और प्रोज इनके सब गोत्रों वाले चक्रेश्वरीदेवी को कुलदेवी के रूप में मानते हैं। बड़ी श्रद्धा-भक्ति से इस की उपासना और आराधना करते हैं । यति श्रीपाल ने अपनी जैन सम्प्रदाय शिक्षा नामक पुस्तक में खंडेलवालों के ८४ गोत्रों में से १५ गोत्रवालों की कुलदेवी चक्रेश्वरी होने का उल्लेख किया है, उनमें से एक सेठी गोत्र भी है। अतः ऐसा मानना अनुचित न होगा कि इस चक्रेश्वरी देवीकी प्रतिमा को सिरहंद में लानेवाला कोई सेठी परिवार होगा और इस मूर्ति के यहां पर स्थिर हो जाने पर यहीं इसके मंदिर का निर्माण कराकर इसे स्थापित कर दिया होगा। यह मंदिर कब बना, किस ने इस का निर्माण कराया, यह खोज का विषय है । इस समय पंजाब में खंडेलवालों के भौसा, सेठी, गंगवाल, भंगडिया, छाबड़ा, गोधा आदि गोत्रों के परिवार विद्यमान हैं। वे सब यहाँ यात्रा करने के लिये तथा मानताएं उतारने के लिये सदा पाते हैं।
1. देखें-पति श्रीपाल कृत जनसंप्रदाय शिक्षा नामक पुस्तक ।
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