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________________ २४२ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म है परन्तु वर्तमान में जो परिवार इस प्रदेश से निकल कर भारत आकर प्राबाद हो गये हैं उनके विषय में यहाँ कुछ प्रकाश डालेंगे । जैनों का श्रागमन इस क्षेत्र में प्रोसवाल परिवार कहाँ से श्राकर कब श्रावाद हुए, इसके लिये लाला विशनदास जी लोढ़ा तथा लाला हेमराज जी सुराणा जो आपस में मामा-भानजा भी हैं वयोवृद्ध एवं सब प्रकार से सम्पन्न और बड़ े परिवारों वाले भी हैं, ये लोग पाकिस्तान बनने पर गाजियाबाद (दिल्ली के निकटस्थ और उत्तर प्रदेश) में आकर प्राबाद हो गये हैं । इन का कहना है कि उनके पुरखा खरतरगच्छीय समयसुन्दर और मुगल सम्राट शाहजहाँ ( विक्रम की १७वीं शती) के समय में राजस्थान से उठकर जेसलमेर, बहाबलपुर होते हुए गंडलिया नगर में आकर आबाद हुए । इनके रीतिरिवाजों से पता चलता है कि ये लोग नागौर, जेसलमेर आदि से उठकर यहाँ आए होंगे | गंडलियानगरी बन्नू से पूर्व दिशा की ओर तीन मील दूरी पर अवस्थित थी । एकदा यति जी गंडलिया में व्याख्यान दे रहे थे । इस समय गीदड़ बोला। जिसकी भावाज सुनकर यति जी ने जाना कि यह नगर उजाड़ हो जायेगा । इसलिये यति जी ने यहाँ के परिवारों को कहा कि- भाप लोग इस नगर को छोड़कर अन्यत्र जाकर नाबाद हो जाइये क्योंकि यह नगर कुछ समय में उजड़ जावेगा । इससे कुछ परिवार कालाबाग़ और लतम्बर में चले गये और बाकी वहीं रहे । गंडलिया में बाकी रहे हुए परिवारों में से एकदा एक परिवार के लड़के की बारात लैय्या जा रही थी । रास्ते में नदी उतरने पर जबरदस्त बाढ़ नाई । उसमें बारात के सब लोग बह गये और लैय्या नगर भी बह गया। परन्तु यहां का जैनमंदिर जिनके मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान थे बच गया । उसके चारों तरफ पानी ही पानी हो गया और मंदिर वाला स्थान एक टापू के रूप में परिवर्तित हो गया । रात्री में गंडलिया के मुख्य श्रावक को स्वप्न माया कि लैय्या वाले जैनमंदिर में से पार्श्वनाथ आदि तीर्थ करों की प्रतिमानों को निकाल ले | प्रातःकाल होते ही नाव में वहाँ जाकर जब मूर्तियों को उत्थापन करके श्रावक लोग मंदिर से बाहर आये तब तत्काल वह मंदिर ढह गया । यह प्रतिमाएं मुलतान में लेजाकर वहां के मंदिर में स्थापित कर दी गई । मुलतान के मंदिर का वह विभाग जहाँ ये प्रतिमाएं विराजमान थीं, लैय्या के नाम से प्रसिद्ध था । इस बारात के डूबने की घटना के बाद लैय्या में बाकी के जो परिवार थे वे भी वहाँ से चले आये । गंडलिया में खरतरगच्छ के दादागुरु तथा क्षेत्रपाल का स्थान शीशम के एक वृक्ष के नीचे था । पाकिस्तान बनने से पहले तक यह स्थान मौजूद था । क्षेत्रपाल बहुत चमत्कारी था । लतम्बर, बन्नू, कालाबाग वाले प्रोसवाल भाबड़े परिवार अपने बच्चों के जन्म और विवाह के समय वहाँ जाकर क्षेत्रपाल की तेल और सिंदूर से पूजा करते थे । वहाँ जैनों की आबादी न रहने पर भी मुसलमान लोग भी क्षेत्रपाल की प्रशातना नहीं करते थे । कालाबाग सिंधु नदी के किनारे पर प्राबाद है । यहाँ नमक का पहाड़ भी है । यह सारा पहाड़ नमक की चट्टानों से भरपूर है । इसके नमक को संधव नमक कहते हैं। यानी सिन्धुदेश का नमक । इसे पहाड़ी धौर लाहौरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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