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पंजाब के सूबा सरहद्दी
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नमक भी कहते है। ख्योड़ा नगर जो कालाबाग के निकटस्थ है वहाँ अग्रेजी सरकार ने इस नमक को पहाड़ से काटकर निकालने की कल-मशीनें लगा रखी थीं और वहाँ से देश-विदेशों में इसका निर्यात किया जाता था। सैंधव नमक को आयुर्वेदिक चिकित्सा शास्त्र में बहुत ही उपयोगी तथा स्वास्थ्यप्रद माना है और अनेक रोगों के उपचार के लिये औषध निर्माण में इसका उपयोग किया जाता है। इस समय यह साराक्षेत्र पाकिस्तान में है । काला बाग़ से सिन्धु नदी के दूसरे पार जिसे मारी इंडस भी कहते हैं यहाँ पर नागरगाजन (नागार्जुन) नाम का पहाड़ है। उस पहाड़ की टेकरी पर एक गुफ़ा है । वहां प्रतिदिन एक गाय पाती थी और उसके स्तनों से अपने प्राप दूध निकल जाता था; जब गाय वापिस जाती तो उसके स्तनों में दूध नहीं रहता था। गाय का स्वामी बड़ा परेशान था। लाचार वह एक दिन गाय के पीछे होलिया। गुफा में पहुँचते ही गाय के स्तनों में से अपने पाप दूध निकलने लगा । देखते ही देखते गाय के स्तनों से दूध समाप्त हो गया । गवाले के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा। चारों तरफ ऊँचे-नीचे विस्मित आँखों से देखने लगा, पर वहां उसे कोई व्यक्ति नज़र न आया। इतने में उसने देखा कि वहां कई देवी-देवता मौजूद हैं और गाय का दूध अपने आप निकलता जा रहा है। गवाला गिड़गिड़ा कर बोला कि 'आप लोग दूध लेकर मुझ गरीब को हानि क्यों पहुँचा रहे हैं ?' तब उन देवों ने बहुत से हीरे-जवाहरातों से गवाले की झोली भर दी। उसने पत्थर समझ कर फेंक दिये । एक हीरा उसकी झोली में रह गया । जिससे वह मालामाल (धनवान) हो गया। पश्चात् यहां धरती से पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा प्रगट हुई। वहाँ पर जैनश्वेतांबर मंदिर का निर्माण हुआ। जब वह देश एकदम म्लेच्छों के अधिकार में आ गया तो उस प्रतिमा को पद्मावती देवी खंभात ले गयी।
लतम्बर और कालाबाग के जिनमंदिरों की प्रतिष्ठाएँ वि० सं० १९६२ में उत्तरार्द्ध लौं कागच्छ के यति रामाऋषि के शिष्य यति राजर्षि ने करवाई। इस क्षेत्र में अधिकतर इन्हीं के चतुर्मास होते रहे हैं । इनकी गद्दी जंडियाला गुरु जिला अमृतसर में थी।
मरोटकोट जिला फिरोजपुर पंजाब में है। वहां का खरतरगच्छ का यति पूनमचन्द भी कभी-कभी इधर आ जाया करता था। बाद में वह कलकत्ता चला गया। वहीं उसका देहांत हो गया।
लतम्बर में ख़तरा होने से यहाँ के दो पोसवाल (भाबड़ा) परिवार कोहाट जाकर बस गये । कोहाट भी सिन्धु नदी के तट पर आबाद है।
बन्नू में १०-१२ घर प्रोसवाल भाबड़ों के थे। यहाँ पर मुहल्ला भाबड़ यान में लाला पन्नालाल सुराणा ने तपागच्छीय आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि के सहयोग से जिनमन्दिर का निर्माण कराया । जिसकी प्रतिष्ठा वि० सं० १६७४ में हुई ।
बन्नू, कोहाट, लतम्बर, कालाबाग, मुलतान, डेरागाजी खां, डेराइसमाईलखां वाले जैनों के अपने बेटी-बेटों के विवाह आदि के रिश्ते इनके अपने क्षेत्र तक ही सीमित थे । इसलिये पंजाब से इनका रिश्ते-नातों का कोई सम्बन्ध नहीं था।
परन्तु संगठन के नाते से श्री प्रात्मानन्द जैन महासभा जो पंजाब और सिंध के श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनों की एक मात्र संस्था है उसके साथ सम्बन्धित थे। पंजाब में होनेवाले धामिक
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