SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म नगर है। यह वि० सं० ८१२ में प्राबाद हुअा ।। १. प्राचीन काल में इस प्रदेश में मूली जाति के लोग प्राबाद थे । इसलिये इस का नाम उन्होंने मूलस्थान रखा । २. मूल नाम सूर्य का भी है । इस नगर में अति प्राचीन चमत्कारी सूर्य का मंदिर था। इसके उपासक इस नगर में बहुत रहते थे, इसलिये इसका नाम मूलस्थान प्रसिद्ध हुअा। जैनमंत्री वस्तुपाल व तेजपाल ने विक्रम की १३वीं शताब्दी में इस सूर्य मंदिर का स्वद्रव्य से जीर्णोद्धार भी करवाया था। तब तक इसका नाम मूलस्थान ही था। इस नगर में लिखे गये अथवा लिपिबद्ध किये गये कई ग्रंथों की पुष्पिकानों प्रशस्तियों में भी इस का नाम मूलस्थान ही लिखा पाया जाता है । बाद में बिगड़कर इसका नाम 'मुलतान' हो गया। जैन ग्रंथों की प्रशस्तियों में इसका नाम मूलत्रान भी लिखा मिलता है। इस का अर्थ सूर्यदेव इस के भगतों के सब कष्टों का नाश करने वाला होता है । यह नगर कई बार उजड़ा और कई बार बसा । नगर के चारों तरफ बहुत दूर तक इस के पुराने खण्डहर बिखरे पड़े हैं। विद्वानों का मत है कि यह नगर १२०० वर्षों से पुराना नहीं है। नगर प्रवेश के लिये छह दरवाज़े हैं । - १. हरम दरवाजा, २. बोहड़ दरवाज़ा, ३. लुहारी दरवाज़ा, ४. दौलत दरवाजा, ५. दिल्ली दरवाज़ा, ६. पाक दरवाज़ा। मुगल सम्राट अकबर ने मुलतान को एक सूबा बनाया था। इस में माऊंटगुमरी से लेकर सक्खर तक का प्रदेश शामिल था । ईस्वी सन् १८३८ (विक्रम संवत् १८९५) में सद् दूजई खानदान के पठान यहाँ के नवाब मुकर्रर हुए। उन में से जाहिदखा प्रथम और मुज़फ़ररंग अंतिम यहां के नवाब थे। मुजफ़ररंग ने ईस्वी सन् १८७८ से १८८८ तक राज्य किया। उस समय यह सूबा बहुत तरक्की पर और आबाद था। पश्चात् शेरे पंजाब महाराजा रणजीतसिंह ने इस सूबे पर अपना अधिकार कर लिया। इस के बाद गुजरांवाला के दीवान सावनमल को रणजीतसिंह ने इस का हाकिम बना कर वहाँ भेजा। इस से पहले सुखदयालसिंह को भी यहाँ का हाकिम बना कर भेजा था । इन दोनों के सुप्रबंध से सूबे की बड़ी उन्नति हुई । सावनमल का इतना प्रभाव था कि बदमाश, गुण्डे और डाकू उस का नाम सुनकर थर-थर कांपते थे । यदि उसका बेटा भी कोई अपराध करता तो वह उसे भी कड़ा दंड देता था। रणजीतसिंह ने डेरागाजिखां को भी सबा मुलतान में शामिल कर लिया था। सावनमल के बाद इस का बेटा मूलराज हाकिम बना । अग्रेजों ने मुलतान पर कब्जा करके मूलराज को कैद करके कलकत्ता भेज दिया और वहाँ उसकी हत्या कर दी गई। जैनों की बस्ती तथा मंदिर आदि पाकिस्तान बनने से पहले यहाँ प्रोसवाल भाबड़ा जैनों के ८० घर थे । उन में से ४० घर जैनश्वेतांबर मूर्तिपूजक थे तथा ४० घर तेरहपंथी दिगम्बरी थे। इस क्षेत्र में श्वेतांबर जैन मुनिराजों का विहार न होने के कारण आज से लगभग ५० वर्ष पहले ४० घर प्रोसवालों के दिगम्बरी बन गये थे तथा इन्होंने दिगम्बर मंदिर का यहाँ निर्माण भी कर लिया था। यहाँ श्वेतांबर जैन खरतरगच्छ के यति (पूज) की गद्दी भी थी। इसके अंतिम यति श्री सूर्यमल जी थे 1. पट्टावली समुच्चय भाग १ गुजराती पृष्ठ २३४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy