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________________ २३६ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (४) पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर की संस्कृत विभाग के हस्तलेख नं० ७४६ की पुष्पिका [वि.] संवत् १८११ मिति कार्तिक सुदी १५ पौर्णमाषां तिथौ बुद्धवासरे लहानूर नगर मध्ये "वाणियां वंशे नौरंगपुरिया लाला नवनिधान राय । (५) सूरीश्वर अने सम्राट पृष्ठ २५४ लाहनूरगढ़ मज्झि प्रवर प्रासाद करायउ (कृष्णदास कृत दुर्जनसाल बावनी)। (६) 'जैन विद्या' प्रथम अंक हिन्दी पृष्ठ ३१ जटमल कृत लाहौर की ग़ज़ल की अगर चन्द नाहटा की प्रति में लाहानूर शब्द पाया है। (७) राजपूतों के इतिहास में इसे लोहगढ़-लोहकोट भी कहा है। (८) अकबर के समय से जैन शास्त्रों में इसका नाम लाहौर और लाभपुर भी मिलता है। जैसे भानुचन्द्र चरित्र आदि में : (6) ब्राह्मण लोग इसे लवपुर भी कहते हैं । (१०) अंग्रेजी स्पेलिंग Lahore के प्रभाव से गुजराती-मराठी में लाहौर लिखते हैं । स्थापना-दंत कथा तो यह चली आती है कि श्री रामचन्द्र जी के बेटे लव ने लवपुर अर्थात् लाहौर बसाया । दूसरे बेटे कुश ने कुशपुर अर्थात् कसूर बसाया। किन्तु इस दंतकथा के तथ्यातथ्य जानने का कोई साधन नहीं है । लाहौर किले में लोह का मन्दिर है और अमृतसर में लोहगढ़ का दरवाज़ा है । गुजरांवाला में लाहौरी दरवाज़ा है । इसका सम्बन्ध लव से है या लोह से है; यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता। किसी किसी का ख्याल है कि ग्रीक लेखक हालमी ने जिस लाबोकल नगर का उल्लेख किया है, वह लाहौर है । ऐसा प्रतीत होता है कि लाहौर को विक्रम की तीसरी-चौथी शताब्दी में किसी राजा लोह ने बसाया था। इसकी पुष्टि पट्टावली समुच्चय भाग २ गुजराती से भी होती है । "विक्रम संवत् ३४८ लाहौर शहर वस्यो” । अर्थात् विक्रम संवत् ३४८ में लाहौर शहर बसा जो थोड़े ही समय में बड़ा भारी नगर बन गया। अवशेष- यद्यपि पंजाब में जैनधर्म का इतिहास बड़ा उज्जवल, महत्वपूर्ण और बहुत प्राचीनकाल से है। यहाँ तक कि यह इतिहास की सीमाओं में बांधा नहीं जा सकता । तथापि लाहौर में इसके अवशेष बहुत पुराने नहीं मिलते । सबसे प्राचीन अवशेष मुगल सम्राट अकबर के समय के हैं। सम्भव है कि खोज करने पर इनसे भी पुराने अवशेष मिल जाएं। लाहौर के पुराने जैन घराने श्वेताम्बर जैनधर्म को माननेवाले ओसवाल हैं। जिनको यहाँ की आम बोलचाल में "भावड़ें" कहते हैं । लाहौर नगर के जिस भाग में प्रोसवालों की बस्ती थी, उसे थड़ियों भाबड़यां कहते थे । तथा कोई ४० वर्षों से इसे जैनस्ट्रीट कहने लगे थे। यहां मकबर के समय का श्वेताम्बर जैन मन्दिर तथा उपाश्रय पाकिस्तान बनने से पहले तक विद्यमान थे । जिनको पाकिस्तान बनने 1. विसेंट स्मिथ-भारत का प्राचीन इतिहास । 2. इससे पहले लाहौर में थड़ियां भाबड़यां में उपाश्रय नहीं था। एक दिन अकबर के दरबार में श्वेतांबर मुनि भानुचन्द्रोपाध्याय देर से पहुंचे। कारण पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि दूर से आने के कारण देर हो जाती है । तब अकबर ने भूमि दी और श्रावकों ने उस पर उपाश्रय बनाया। (भानुचन्द्र गणि चरित्र प्रकाश २, एलोक १२२-३०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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