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लाहौर
२३५ १९६६, १९७२ के दो चौमासे किये और प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि द्वारा बनाये हुए श्रावकश्राविकारों को दृढ़ संस्कार दिये । वि० सं० १९७२ में मुनि श्री अमी विजय जी ने यहाँ मुनि राम विजय को दीक्षा दी।
अाज तक इस नगर के चौदह श्रावक-श्राविकानों ने दीक्षाएं लीं। जिनमें सात श्रावक पौर सात श्राविकायें थीं। जिनका परिचय हम आगे देगे।
जीरा नगर को इस बात का श्रेय है कि यहाँ आज तक अन्य छह दीक्षाएँ श्वेताम्बर तथा स्थानकवासी साधु-साध्वियों की हुई हैं।
पाकिस्तान बनने से पहले यहाँ श्वेताम्बर जैनों के ३०, ३५ परिवार तथा स्थानकवासी ३०, ३२ परिवार थे। प्रब ८, १० परिवार श्वेताम्बर तथा १०, १२ घर स्थानकवासियों के हैं। जो परिवार यहाँ से चले गए है उनमें से अधिक लुधियाना में जाकर प्राबाद हो गये हैं। वायोंकि पाकिस्तान बनने के बाद जीरा नगर के भारत राज्य में होते हुए भी यहाँ के व्यापार व्यवसाय में बहुत कमी हो गई है।
अाजकल यहाँ श्वेताम्बर संघ में श्री मदनलाल नौलखा, श्री शान्तिदास रांका, श्री सत्य. पाल नौलखा, लाला शान्तिदास सुपुत्र लाला ईश्वरदास नौलखा, हकीम अमरचन्द नौलखा, लाला प्यारेलाल नौलखा, लाला बाबूराम नौलखा, डाक्टर रिखबदास नौलखा आदि प्रमुख श्रावक हैं।
३-लाहौर लाहोर पंजाब का बड़ा प्राचीन नगर है । यह कई सौ वर्षों से पंजाब की राजधानी रहा है। पंजाबी लोग इसे 'लाहौर अथवा ल्हौर' कहते है । फारसी किताबों में इसको लहावर, लोहावर, लहानूर लहवर, रहवर इत्यादि लिखा है। अमीर खुसरो ने इसे लाहानूर के नाम से भी पुकारा है।
जैसे --अज हद्दे सामानिया ता लाहानूर हिच इमारत नेस्त मगर वारे कसूर । छ प्राचीन जैन लेखकों ने भी इसे यही नाम दिया है । जैसे अमृतसर जैनशास्त्र भण्डार की अणत्ताववाइय प्रति की पुष्पिका ।
(१) [वि.] संवत् १५६१ वर्षे कार्तिक वदी ६ दिने गुरुवासरे सहगल गोत्रे परम पुष हींगा तत्पुत्र माणिक तत्पुत्र लद्धा, श्री बृहत्गच्छे श्री मुनीश्वर सन्ताने श्री पुण्यप्रभ सूरि त । शिष्य वा० श्री भावदेवाय सिद्धान्तस्य पुस्तकं स्वपुण्यार्थं श्री लाहानूरपुरे।
(२) पट्टी जिला अमृतसर--जैन शास्त्रभण्डार को जम्बूद्वीपपण्णत्ति की पुष्पिः । [वि.] संवत् १७६४ वर्षे मिति १४ शुक्लपक्षे वार बुद्धवारे श्री ५ पूज्य जी हरिदास जी तस्य सिय मणसारिष तत्र लिषतं लाहानूर मध्ये कुतुबषां की मण्डी।
(३) पट्टी जिला अमृतसर जैन शास्त्रभण्डार को कर्मग्रंथ की पुष्पिका
लिषतं मलूका-ऋषि [वि.] संवत् १७६५ अश्वन सुदी ६ मण्डी कुतुबषां की गच्छे सिंघान [लोकागच्छ] का लाहानूर मध्ये । 1. किरनुम अदैन । 2. 3. 4-Catalogue of Manuscripts in the Punjab Jain Bhandars by
Dr; Banarsidas Jain Lahore
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