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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म इस नगर में श्री विजयानन्द सूरि जी की पुण्य स्मृति में गुरुमन्दिर प्रात्मभवन के नाम से है । जिसमें गुरुदेव का चरणपट्ट प्रतिष्ठित है । प्रतिष्ठा प्राचार्य श्री विजयविद्या सूरि तथा मुनि विचार विजय जी ने कराई । २३४ पंजाब सरकार ने पंजाब में पुराने धार्मिक स्थानों में सिखों के प्रमृतसर के दरबार साहब ( स्वर्ण मंदिर ) गुरुद्वारे को प्रथम तथा इस जीरा के जैनमंदिर को दूसरा दर्जा दिया है । इस मन्दिर में प्राचीन इतिहास और साहित्य का अनमोल संग्रह सुमति जैन हस्तलिखित शास्त्र भंडार था । जो सर्व प्रसिद्ध था। जिसमें नवयुगनिर्माता न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य श्री विजयानन्द सूरि जी की हस्तलिखित पांडुलिपियाँ भी हैं । यह शास्त्रभंडार पंजाब के दूसरे नगरों के जैन शास्त्रभंडारों के साथ दिल्ली रूपनगर के मन्दिर में वल्लभस्मारक के लिए भेजा जा चुका है । यहाँ के इस शास्त्रभंडार की सूचि पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर ने पंजाब के कतिपय अन्य जैन शास्त्रभंडारों की सूचि के साथ प्रकाशित कराई थी ( पाकिस्तान बनने से पहले) । यहाँ श्री श्रात्मानन्द जैनसभा की स्थापना ईस्वी सन् १९२० के लगभग हुई। उस समय यहाँ के प्रमुख श्रावक १ -लाला दीनानाथ १- लाला कुल्लाहमल, ३-लाला राधामल, ४-लाला हरदयाल मल नौलखा । दूगड़ों में लाला लालूमल का परिवार तथा बोथरा गोत्रीय श्री खरायतीराम जी के पूर्वप्रादि थे । सकल श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ पंजाब के संगठन रूप श्री प्रात्मानन्द जैन महासभा पंजाब ( वर्त्तमान में उत्तरीय भारत ) की स्थापना प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी के शिष्य उपाध्याय सोहनविजय जी के उपदेश से वि० सं० १९७८ ( ईस्वी सन् १९२१) जेठ सुदि ८ के दिन गुजरांवाला में हुई। इसका मुख्य कार्यालय सात-आठ वर्ष तक जीरा में रहा । उस समय महासभा के प्रधान लाला नत्थुमल नौलखा थे और महामन्त्री लाला खेतराम जी नौलखा थे । यहाँ एक बार श्रात्मानन्द जैन महासभा पंजाब का वार्षिकोत्सव भी हुआ था जिसके प्रधान जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक बीसा श्रीमाल भाई श्री बंसीधरजी B.A. L. T. चरखीदादरी निवासी थे । इनका अध्यक्षीय भाषण "जैनकोम से खिताब ( जैनसमाज से निवेदन ) एक दस्तावेज की हैसियत रखता है । देश विभाजन के बाद महासभा का पुनर्निमाण करके महासभा का मुख्य कार्यालय ज़ीरा में कायम किया गया, जिसके प्रधान लाला बाबूराम जी नौलखा एम. ए. एल. एल. बी. और महामन्त्री लाला खेतराम जी नौलखा को नियुक्त किया गया । जिन्हों ने कई वर्षों तक इस पद पर रह कर श्रीसंघ पंजाब की सेवा की । जीरा में जैन शिक्षा का प्रचार पहले साधु-साध्वियाँ करते रहे । फिर ब्रह्मचारी शंकरदास जी नौलखा ने किया । ईस्वी सन् १९४४-४५ से धर्मशिक्षा पाठशाला की स्थापना की जिसमें श्री तिलकचन्द (भ्राता) जी जैन न्यायतीर्थ (श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल गुजरांवाला के विनीत) धर्म शिक्षा देते थे । यहाँ पर मूर्तिपूजक श्वेताम्बर संघ प्रभावशाली है। जिसका नाम श्री प्रात्मानन्द जन सभा है। गुजराती साधु श्री अमीविजय जी और श्री रविविजय जी ने यहाँ वि० सं० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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