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________________ २२८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म " इक्कु हुकुम छत्रपति अकबर भुपति दीयउ । उद्यम मुख नूरि सीलदेव सूरि कीयउ ॥ किrs उद्धार नगर सिंगार मणोहार जिणहर सिंधि करयउ । रोहिणी ऊजवणइंजिनभवनद्द प्रतिमा थापी पुण्य भरयउ || सब जगत वखाणइ नगरि समाणइ सोलह तेतालइ कियउ । श्री अनन्तमाल (नाथ) प्रभु भेट्यउ हुकमु साहि अकबरी दीयउ ||४|| यहाँ पर गृह चैत्यालय ( घर जिनमंदिर) भी अनेक थे । जिनमें से कुछ ये थे । १. बिना शिखर का पूजों वाले वर्त्तमान उपाश्रय के सामने दाईं ओर । २. वर्तमान जैनमंदिर की पिछली श्रोर । ३. क्षत्रियों के मोहल्ले में वर्त्तमान खंडहर के स्थान पर । ४. जैनमंदिर के दरवाजे के अन्दर दाखिल होते ही बाईं ओर । ५. इसके थोड़ा प्रागे भोजकों के मुहल्ले में ६. गद्दहिया गोत्रीय लाला सखीदास के मकान में उन्हीं के द्वारा बनवाया हुआ | इस मंदिर को विक्रम की १७वीं शताब्दी में बनावाया गया था । उस समय कई जिन - प्रतिमाओं की यहां प्रतिष्ठाएं भी हुई थीं । यदा-कदा यहाँ कुंत्रों और खंडहरों में से जिन - प्रतिमाएं मिलती रहती हैं । एक प्रतिमा आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभु की खंडित जिस की प्रतिष्ठा वि० सं० १६४३ में हुई थी, पद्मासनासीन आठ इंच ऊंची हरे पाषाण की जिस पर सच्चे मोतियों का काला लेप है, मुसलमानों के मुहल्ले के कुँए में से मिली थी । जो वर्तमान जैन श्वेतांबर मंदिर में विराजमान कर दी हुई है । 2 संभव है कि इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा भी शीलदेव सूरि ने की होगी । इस समय पूजों के एक उपाश्रय के सिवाय उपर्युक्त प्राचीन उपाश्रयों मौर मंदिरों में से एक भी धर्मस्थान विद्यमान नहीं है । सामाना नगर के उत्तर की ओर दो मील की दूरी पर एक पानबड़ची अथवा बड़ेच नाम का गाँव है । यह किले में बसा हुआ है । यहां पुराने समय में श्वेतांबर प्रोसवाल जैनों के कई घर थे तथा एक घर जिनमंदिर भी था जो श्राज नहीं है । श्री पूज्यों के समय में सामाना में जैन साहित्य की रचना भी खूब होती रही। यहाँ पर अनेक विषयों के नये ग्रंथ लिखे गए तथा पुराने ग्रंथों की पाण्डुलिपियाँ भी कराई गई । इस ग्रंथ संग्रह में से अनेक ग्रंथ कई साधु ले जाते रहे जो उन्होंने वापिस नहीं लौटाए । बाकी का सारा हस्तलिखित शास्त्रभंडार दिल्ली में रूपनगर श्वेतांबर जैनमंदिर में इस समय सुरक्षित है । इस शास्त्रभंडार में सामाना, साढौरा, सुनाम, सरसा, नागपुर, पुनेरा गांव, रोपड़, होशियारपुर, लाहौर ( लाभपुर- लोहानुपुर - लोहाकोट), नूनड़ नगर, अंबाला, 'बा नगरी, हिसार, जग राम्रों, मुलतान, राजपुरा, सुलतानपुर, पंचानेर, जोधपुर, मालेरकोटला, पिंडी ( रावलपिडी), 1. भोजकों को सेवग भी कहते हैं। ये लोग ओसवालों के बनाये हुए जैनमंदिरों में पूजा सेवा का काम करते हैं और प्रोसवालों के सिवाय अन्य किसी भी धर्म व जाति से ये लोग यजमानी का संबंध नहीं रखते । 2. ज्ञात होता है कि यह श्री चन्द्रप्रभु की प्रतिमा बड़गच्छीय प्राचार्य श्री शीलदेव सूरी द्वारा वि० सं० १६४३ में सामाना के अनन्तनाथ के मंदिर में प्रतिष्ठित की गई प्रतिमानों में से एक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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