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________________ हस्तिनापुर में जैनधर्म २२५ हो गये । विश्वविद्यालय की योजना भी ठप्प हो गई। इस क्षेत्र में भूमि की सिंचाई के लिये गंगा नदी से एक नहर का निर्माण चालू है । इस नहर की खुदाई करते हुए भूमि में से १. श्री शांतिनाथ २. श्री अरनाथ तथा ३. श्री नेमिनाथ की शासनदेवी अंबिकादेवी की २० जून १९७६ ई० को तीन श्वेतांबर जन प्रतिमायें सफ़ेद पाषाण की पद्मासन में २१ इंच ऊंची निकली हैं । अंबिकादेवी के सिर पर नेमिनाथ की छोटी प्रतिमा बनी है । ये तीनों प्रतिमाएं अत्यंत सर्वाग सुन्दर कलापूर्ण निर्मित हैं। अंबिकादेवी पर कौटिकगण के किसी प्राचार्य द्वारा प्रतिष्ठा कराने का लेख अंकित है। यह लेख कंकाली टीले मथुरा से प्राप्त श्वेतांबर जैनमूतियों के लेखों से बराबर मेल खाता है । श्वेतांबर जैनागम कल्पसूत्र की स्थविरावली में उल्लिखित प्राचार्य परम्परा द्वारा प्रतिष्ठित हैं। इनकी कला मौर्य सम्राट सम्प्रति द्वारा निर्मित-प्रतिष्ठित मूर्तियों के साथ तथा कंकाली टीला मथुरा से प्राप्त पद्मासनासीन तीर्थंकर प्रतिमानों के साथ मेल खाती हैं। विशेष बात यह भी है कि दिगम्बर पंथी उसी प्रतिमा को ही मानते हैं जिस में पुरुष जननेन्द्रिय बनी हो। इन प्रतिमानों में पुरुष जननेन्द्रिय नहीं है। इसलिये ये प्रतिमाएं निःसंदेह श्वेतांबर जनों की है। अंबिकादेवी पर अंकित लेख सिद्धं [सं०] ५ हे० ४ दि० १० अस्य पूर्वाये कोटियतो गणतो.............. इस प्रतिमा पर वि० सं० ५ (ई० स० ८३) को हेमंत मास ४था मिति दिन १० को श्वेतांबर जैन कोटिक गण के किसी प्राचार्य के प्रतिष्ठा कराने का उल्लेख है। यह गच्छ श्वेतांबर जैनों का है । अत: वे तीनों प्रतिमाएं दो हज़ार वर्ष पुरानी श्वेतांबर जनों की हैं। इस नहर की खुदाई कराने वाला प्राफ़िसर दिगम्बर जनी था इसलिये उसने इन तीनों मूर्तियों को दिगंबर जैन मंदिर में पहुंचा दिया और इस समय ये तीनों प्रतिमाएं दिगम्बर मंदिर में दिगम्बरों के कब्जे में हैं । (१५) हिन्दू जनता भी यहाँ प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को बुड़ गंगा नामक गंगा की एक प्राचीन धारा में हजारों की संख्या में स्नान करने पातो है । इस समय यहां के जनमंदिर, जनसंस्थाए, पारणा स्तूप (निशियाँ जी) तथा अन्य निशियाँ जी से ही हस्तिनापुर लोगों का प्राकर्षण स्थल बना हुआ है। प्रतिवर्ष भारत के सब स्थानों से यहाँ यात्री यात्रा को पाते हैं। (१६) मि० मार्गशीर्ष सुदि १० को श्री शांतिनाथ के बड़े श्वे. जैन मंदिर पर प्रतिवर्ष ध्वजा चढ़ाई जाती है। (१७) यहाँ पर श्वेतांबर जनों की तरफ से वर्ष में तीन उत्सव होते हैं इस समय सारे भारत से दूर और समीप के हजारों जन यात्री यहाँ यात्रा करने आते हैं । १. फाल्गुण शुक्ला १३-१४-१५ को होली उत्सव । २. वैसाख सुदि ३ (अक्षयतृतीया) को वर्षीय तप के पारणा का उत्सव । ३. कार्तिक सुदि १५ को कार्तिकी पूर्णिमा उरसव । (१८) दिगम्बरों की तरफ से यहाँ वर्ष में दो मेले भरते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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