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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
से बसाया था। यह मुग़लों द्वारा प्राचीन हस्तिनापुर को पुनः बसाने का प्रयत्न था। उक्त काजी द्वारा निर्मित एक पक्की मस्जिद और मकबरे के भग्नावशेष वहाँ अब भी दृष्टिगोचर होते हैं ।
(८) महाल पांडवान में एक मकबरा खानगाह मारू फशाह कबीर और एक पुरानी मस्ज़िद है।
(९) पट्टी कौरवान में एक मकबरा और कुछ पक्की कबरें हैं। उन में से कई अवशेष तो काफ़ी पुराने मालूम होते हैं । ... (१०) हस्तिनापुर के निकटवर्ती बहसूमें में सैयद मुहम्मद रजाशाह प्रौर सैयद अब्दुल्लाह की अकबरकालीन की दरगाहे हैं।
(११) हस्तिनापुर के निकट ही एक प्राचीन गजपुर ग्राम है जो इस प्राचीन महानगरी के सर्व प्रथम नाम गजपुर की याद बनाये हुए हैं। जिस प्रकार दिल्ली और इन्द्रप्रस्थ का संबन्ध है ऐसा ही हस्तिनापुर और गजपुर का भी रहा होगा।
(१२) प्राचीन अवशेषों पौर स्मारकों के अतिरिक्त वर्तमान हस्तिनापुर में जो सब से अधिक माकर्षक वस्तुएं हैं, विशेषकर पुरातत्त्वज्ञों तथा इतिहासकारों के लिये यहाँ के प्राचीन टीले हैं, जिनके अन्दर न जाने पुरातत्त्व को कितनी निधियां छिपी पड़ी हैं।
(१३) सम्राट सम्प्रति मौर्य ने अपना एक लेखस्तम्भ प्राचीन हस्तिनापुर के एक सिरे पर स्थित मेरठ नगर में स्थापित कराया था।
(१४) नवीन हस्तिनापुर टाउन के सामने सड़क के उस पार हिन्दूनों ने एक नवीनमंदिर का निर्माण किया है । इस में सीता-राम, राधा-कृष्ण तथा शिवलिंग स्थापित किये हैं।
प्राचीन तथा नवीन हस्तिनापुर श्री ऋषभदेव के समय से लेकर भारत में अंग्रेजी राज्य से पहले तक हस्तिनापुर अनेकबार बसा और उजड़ा। ब्रिटिश शासन काल से पहले ही हस्तिनापुर जंगल रूप में परिवर्तित हो चुका था और अपनी प्राचीन सुदरता तथा महत्व को खो चुका था । विक्रम की बीसवीं शताब्दी में इसी जंगल में पुनः एक श्वेतांबर जैन मंदिर तथा एक दिगम्वर मंदिर का निर्माण हुना। ब्रिटिश सत्ता भारत पर से समाप्त हो जाने के पश्चात् स्वतंत्र भारत सरकार ने हस्तिनापुर के नवनिर्माण की योजना बनाई। भारत के होम मिनिस्टर श्री वल्लभभाई पटेल ने इसको वृहत् रूप देने की योजना को अपने हाथ में लिया। इस योजना में (१) विशाल हस्तिनापुर का नवनिर्माण, (२) प्रौद्योगिक केन्द्र (३) कुरु क्षेत्र विश्वविद्यालय तथा (४) रेलवे का बड़ा केन्द्र बनाना था।
___ श्री वल्लभभाई पटेल ने हस्तिनापुर टाउन की नींव रखी और उसका निर्माण चालू हो गया। इस अर्से में कुछ कल-कारखाने भी यहाँ चालू किये गये। परन्तु श्री पटेल के असमय में ही देहांत के बाद सारी योजना धरीधराई रह गयी। हस्तिनापुर टाऊन का उन की हयाती में जितना निर्माण हो पाया, उतना ही रह गया । प्रागे प्रगति होनी समप्त हो गई। सारी योजना धरी-धराई रह गई । न तो हस्तिनापुर का विस्तार हो पाया, न रेलवे से जुड़ ही पाया और न ही कलकारखाने लग पाये । जो कलकारखाने लगाये भी गये थे वे भी न चल पाये, आगे चलकर बन्द
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