SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिंधु- सौवीर में जैनधर्मं १६६ ( ६ ) वि० सं० १६४६ में खरतरगच्छीय जिनचन्द्र सूरि ने लाहौर में सम्राट अकबर से भेंट की और चतुर्मास करके बादशाह से फ़रमान प्राप्त किया। इसका विवरण भी हम आगे देंगे और वि० सं० १६५२ में वे पंजाब से लौटते हुए पंचनद की साधना करने के लिए देराउलनगर में गये वहां जिनकुशल सूरि के चरण बिम्ब (पगलों) के दर्शन किये । (७०) वि० सं० १६६७ में श्री समयसुन्दरु वाचक ने उच्चनगर में श्रावक आराधना नाम के ग्रंथ की रचना की थी । (७१) हिसार का सारा क्षेत्र उस समय श्वेतांबर जैनधर्म का केन्द्र था । इस क्षेत्र में अनेक जैन मंदिर थे और श्रावकों की बहुत संख्या थी । इस क्षेत्र में जो जैनसाधु मुनिराज निवास करते थे वे हिसारिया गच्छ के नाम से पहचाने जाते थे । श्वेतांबर जैनों के ८४ गच्छों में एक हिसारिया गच्छ का नाम भी श्राया है ।" इसके अतिरिक्त मुलतान, खोजावाहन, परशुरोडकोट, तलपाटक, मलकवाहनपुर, हाजी खां डेरा, इसमाइलखां डेरा, गाजीखां डेरा, भट्टनेरा, खारवारा, दुनियापुर, सक्कीनगर, द्वादट्टा, नयानगर, नवरंग, लोदीपुर आदि अनेक ऐसे नगर और गांव हैं जहां अनेकानेक जैन घटनाओं के होने के उल्लेख पट्टावलियों वंशावलियों, शिलालेखों, प्रशस्तियों और अन्य अनेक साधनों आदि से उपलब्ध हैं । इस पर से यह बात निः सन्देह है कि विक्रम की १७वीं शताब्दी तक ( श्रीरंगजेब के काल से पहले तक) सिंधादि पंजाब के सारे जनपद में बहुत बड़ी तादाद में जैनधर्म का बोलबाला था । सारे जनपद में श्वेतांबर जैन श्रमण श्रमणियों का सतत श्रावागमन रहा । सारे जनपद में जैनों की बहुत संख्या थी । तथा उपासना अर्चा के लिये स्थान-स्थान पर जैनमंदिरों का जाल बिछा हुआ था | जैनधर्म की प्रभावना प्रचार और प्रसार के लिये अनेक कार्य होते रहे। दीक्षाएं, जैन मंदिरों का निर्माण तथा प्रतिष्ठाएं होती रही हैं । यहाँ पर एक स्पष्टीकरण करना आवश्यक है कि सिंधु सौवीर जनपद के उपर्युक्त जिनजिन नगरों और गांवों में जैन साधुनों के श्राने-जाने तथा अन्य विवरणों का उल्लेख है वे सभी गांव-नगर अभी सिन्ध में विद्यमान हैं; ऐसा नहीं है । इनमें से बहुत से नगरों और गांवों का तो पता ही नहीं । कुछ नगर बहावलपुर स्टेट में, कुछ राजस्थान में, कुछ पंजाब में और कुछ तो ठेठ भारत की सरहद के ऊपर हैं ऐसा होने का एक ही कारण है कि सिंध की सीमा आजकल जहां तक मानी जाती है इतनी पहले नहीं थी । ( सारा सिंध इस समय पश्चिमी पाकिस्तान में है ) पंजाब, अफ़ग़ानिस्तान, भारत की पश्चिमोत्तरी सरहद, बलोचिस्तान, काबुल, बहावलपुर स्टेट, राजपुताना श्रीर जेसलमेर इन का बड़ा भाग सिंघ में ही था, इसलिये हमने इन सब नगरों और गांवों का सिंध में ही समावेश किया है। इस का मुख्य कारण यह भी है कि प्राचीन जैन वाङ्गमय में इस सारे क्षेत्र का सिन्धु-सौवीर देश के अन्तर्गत ही उल्लेख किया है । हम उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट जान पाये हैं कि तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ के पहले से लेकर विक्रम की १७वीं शताब्दी तक सिंधु सौवीर पंजाब जनपद में श्वेताबर जैन श्रमण 1. त्रैमासिक जैन साहित्य संशोधक तृतीय खंड अंक १ पृ० ३२ गच्छ नं० ६८ 2. बौद्ध ग्रंथों ने इस जनपद की चर्चा नहीं की इस से पाया जाता है कि यहां बुद्धधर्म का प्रवेश ही नहीं हो पाया था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy