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________________ सिंधु- सौवीर में जैनधमँ (५२) खरतरगच्छीय श्री जिनपति सूरि ने हिसार के समीप असीनगर में जिनप्रतिमा प्रतिष्ठा कराई। (हिसार जिले का असीनगर वर्तमान में हांसी नगर अथवा रोहतक के पास अस्थल बोहर गाँव जहां ई० स० १९७५-७६ में भूखनन से जैन श्वेतांबर प्रतिमाएं मिली हैं) (५३) वि० सं० १३८४ में जिनकुशल सूरि सिंध में उच्चनगर, देरावर, क्यासपुर, बहरामपुर, मलिकपुर प्रादि अनेक नगरों में विचरे । नौ साधुषों और साध्वियों को दीक्षाएं दीं। क्यासपुर और रेणुकोट में जैन मंदिरों की प्रतिष्ठाएं भी कीं । आप वि० सं० १३८४ से १३८६ तक सिंध में विचरे । प्राप का स्वर्गवास देरावर (सिंध) में वि० सं० १३८६ फाल्गुण वदि पंचमी को हुआ । आप के अग्नि संस्कार के स्थान पर एक स्तूप का निर्माण किया गया । (५४) वि० सं० १३५६ जेठ सुदि ६ को हरिपाल श्रावक कारित श्री श्रादिनाथ की प्रतिमा, देरावर में जिनकुशल सूरि का स्तूप, जेसलमेर और क्यासपुर के लिये श्री जिनकुशल सूरि की ३ प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ । (५५) जिनचन्द्र सूरि के गुरु जिनमणिक्य सूरि देराउल (देरावर) में श्री जिनकुशल सूरि की समाधि के दर्शन करने आये थे । वहां से जेसलमेर जाते हुए पानी के प्रभाव से वि० सं० १६११ में रास्ते में हो स्वर्गवासी हुए । (५६) वि० सं० १४६० में भुवनरत्नाचार्य ने द्रोहदट्टा में चतुर्मास किया । (५७) हम कांगड़ा के प्रकरण में लिख आये हैं कि - विक्रम सं० १४८३ में जयसागरोपाध्याय सिंध में मुबारकपुर में आये उस समय वहाँ जैनों के १०० घर थे । उन्होंने मम्मन वाहन में चौमासा किया था । वे संघ के साथ मरुकोट (मरोट) महातीर्थ की यात्रा करने भी गये थे । तथा वि० सं० १४८४ में आप ने मलिकवाहनपुर में चौमासा किया । तत्पश्चात् संघ के साथ कांगड़ा तीर्थ की यात्रा करने गये थे । ( मलिकवाहनपुर का नाम मूलस्थान, मुलतान के नाम से सम्बंधित प्रतीत होता है । १६७ (५८) विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में जिनचन्द्र सूरि के शिष्य जिनसमुद्र सूरि ने सिंध में पंचनद की साधना की थी । (५६) वि० सं० १२७५ से १३०३ में परमार्हत जैन धर्मानुयायी महामात्य वस्तुपाल व तेजपाल दोनों भाइयों ने सारे भारत में देश, समाज, राज्य, धर्मं के लिए अरबों खरबों रुपया खर्च करके अनेक महान कार्य किये थे इस का परिचय हम श्रागे लिखेंगे । उन्होंने सिंध- पंजाब, काश्मीर में भी बड़े-बड़े जनोपयोगी कार्य किये। इस क्षेत्र में जैनमंदिरों आदि का निर्माण तथा जीर्णोद्वार भी कराया । मात्र इतना ही नहीं परन्तु जैनेतर मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार भी कराया था। पंजाब में मूलस्थान ( मुलतान ) में हिन्दुत्रों का महाप्रसिद्ध एक सूर्यमंदिर था जिसके लिये लोगों की यह धारणा थी कि इस मंदिर का अद्भुत सामर्थ्य है । इस मंदिर को मुसलमानों ने भंग कर दिया था । महामात्य वस्तुपाल तेजपाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवा दिया था । (दर्भावती की मेघनाथ प्रशस्ति श्लोक ९२ से १११) । इस प्रकार पंजाब आदि जनपदों में भी इनके पुण्यकार्यों की कमी नहीं थी । (६०) मुहम्मद गौरी के स्वदेश लौट जाने के बाद वास्तव में भारत में मुसलमानी शासन की दृढ़ नीव कुतुबुद्दीन एबक द्वारा डाली गई। यह इसलाम का कट्टर अनुयायी था । इस ने अपनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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