________________
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
सत्तर हजार (७००००) स्वर्ण मुद्राएं काबुल के हिन्दू राजाओं की छापवाली प्रत्येक का तोल लगभग ५० ग्रेन । सोने और चांदी की सिल्लियां सत्तर करोड़ मन जिनके मूल्य का प्रांकन करना मानव के सामर्थ्य से बाहर है। मात्र सोने और चांदी के सिक्के जो ऊँटों पर लादकर ले गया था उनका मूल्य उस समय १७५०००० पौंड (२६२५०००० रुपये) से अधिक था । संख्यातीत सोने चांदी की मूर्तियां लूट ले गया। [जवाहरातों, रत्नों के भंडार तथा मूर्तियां भी ले गया मुसलमान इतिहासकार अबुरहीम लिखता है कि काबुल के इंडो सेंथियन राजानों का साठ पीढ़ियों तक कांगड़ा के किले पर अधिकार रहा। इस आधार से यह कहा जा सकता है कि कांगड़ा किले पर काबुल के राजाओं का महमूद गज़नवी के समय तक राज्य रहा होगा। यह बात तो निश्चित है कि कांगड़ा किले पर काबुल के हिन्दू राजाओं का अधिकार था। काबुल के राजाओं के हजारों सिक्के सारे पंजाब में मिलते रहते हैं परन्तु इन राजाओं का एक भी सोने का सिक्का माजतक नहीं मिला। हां इनके चांदी के सिक्के अवश्य मिले हैं, जिससे ज्ञात होता हैं कि नगरकोट का किला उस समय भीम का किला कहलाता था। पर मुसलमान उत्तवी और फरिशता इसे भीमनगर कहते हैं।
कांगड़ा पर महमूद गजनवी के प्राक्रमण से पहले इतिहास में इसका नाम कांगड़ा कहीं नहीं पाया जाता । पर काश्मीर के इतिहास (ई० स० ४७०) में इसका नाम त्रिगर्त कई बार पाया जाता है । इससे महमूद गजनवी के आक्रमण से ६०० वर्ष पूर्व के इतिहास में इसका नाम त्रिगर्त उपलब्ध है । (सर ए० कनिंघम की प्राकियालोजिकल रिपोर्ट ई० स० १८७२-७३ वा ५)
कांगड़ा जिला वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में है। प्राचीन उल्लेखों में कांगड़ा जालंधर जनपद में था ऐसा वर्णन मिलता है। परन्तु अब जालंधर जनपद का अस्तित्व न रहकर उसका कुछ भाग वर्तमान पंजाब प्रदेश में और कुछ भाग हिमाचल प्रदेश में शामिल कर लिया गया है । हिमाचल हिमालय पर्वत का दूसरा नाम है। खरतरगच्छीय जैन श्वेतांबर प्राचार्य श्री जिनप्रभ सूरि ने अपने विविध तीर्थकल्प के चौरासी महातीर्थ कल्प में लिखा है कि
"हिमाचले छाया-पावों मंत्राधिराजः श्री स्फुलिंग" अर्थात्-हिमाचल में छायापार्श्व मंत्राधिराज श्री स्फुलिंग नाम का जैन महातीर्थ है। यह तीर्थ हिमाचल के किस नगर में था इसकी खोज अवश्य होनी चाहिये ।
नगरकोट को आजकल कांगड़ा या कोट कांगड़ा कहते हैं। इसका अाधुनिक हाल बाब साधुचरणप्रसाद ने अपने 'भारत भ्रमण' पुस्तक के द्वितीय खण्ड पृ० ४७६ में संक्षेप से इस प्रकार कहा है
__ "पंजाब के जालंधर विभाग के कांगड़ा जिले में (३२ अंश ५ कला १४ विकला उत्तर अक्षांक; ७६ अंश १७ कला ४६ विकला पूर्व देशांतर में) कांगड़ा कसबा है। जिसे लोग पहले नगरकोट कहते थे।"
यह कसबा एक पहाड़ी के दोनों ढालों पर बसा है, वहाँ से बाणगंगा दीख पड़ती है। दक्षिणी ढाल पर कसबे का पुराना भाग है। उत्तरीय ढाल पर भवन की शहर तली और महामाया देवी का प्रसिद्ध मंदिर है तथा खड़े चट्टान के सिर पर किला है। कांगड़ा में महामाया देवी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org