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________________ कांगड़ा (हिमाचल) में जैनधर्म १५३ ३-त्रिगर्त (जालंधर-कांगड़ा) क्षेत्र त्रिगत देश-जो भूमि रावी, व्यास, सतलुज इन तीन नदियों द्वारा सिंचित होती है वह क्षेत्र त्रिगत देश के नाम से प्रसिद्ध था । प्राचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि ने जालंधर और त्रिगर्त को एक माना है। राजतरंगिणी (काश्मीर इतिहास) के लेखक कवि श्रीधर ने लिखा है कि-Jalandhras Trigartah syuh “Jalandhra ie. Trigartah. जालंधर का दूसरा नाम त्रिगर्त था। जो प्राजकल अपर दवाब के नाम से प्रसिद्ध है । जिसमें रावी, व्यास और सतलुज इन तीन नदियों के पानी से सिंचित होने वाले सारे प्रदेश का समावेश हो जाता है। जालंधर देश-यह एक समृद्धिशाली देश था। इसमें सारे अपरदवाब का क्षेत्र समा जाता था । इस देश की राजधानी जालंधर नगर थी। कोट कांगड़ा अथवा नगरकोट का सुदृढ़ किला मुसीबत के समय इस देश की सुरक्षा के लिए निर्माण किया गया था। इस देश का नाम प्रसिद्ध जालंधर दैत्य के नाम से पड़ा था जो गंगा का पुत्र था। गंगा नदी सब नदियों से पवित्र मानी जाती है । इस दैत्य की कथा विस्तार से पद्मपुराण में आती है। मैदानी इलाके के प्राचीन जालंधर अथवा त्रिगत प्रदेश में जालंधर शहर, पठानकोट का किला, नूरपुर का किला, पहाड़ी इलाके का धर्मेरी का ज़िला, कांगड़े का किला, वैजनाथ का मंदिर, और ज्वालामुखी का मंदिर नामांकित प्रसिद्ध स्थान हैं। कुछ प्राचीन शिलालेखों वाले पत्थर जालंधर के आस-पास पाये गये हैं। परन्तु अभी तक वे पढ़े नहीं गये। इसलिए यहां का प्राचीन इतिहास आज तक प्रछन्न ही रहा है । (सर कनिंघम की प्राकियालोजिकल रिपोर्ट १८७२-७३ वा० ५)। जालंधर शहर में वर्तमान में एक श्वेतांबर जैन मंदिर है जिसका निर्माण विक्रम की वीसवीं शताब्दी में होशियारपुर निवासी लाला नत्थुमल फतूमल गद्दिया बीसा प्रोसवाल (भावड़ा) ने कराया था। कांगड़ा ज़िला (किला नगरकोट) कोट कांगड़ा अथवा नगरकोट का प्रसिद्ध किला जिसका मुसलमान इतिहासकारों ने अक्सर वर्णन किया है कि यह किला महाभारत के युद्ध के समाप्त होने के बाद तुरंत कटौचवंशीय राजा सुशर्मचंद्र ने बनाया था। मांझी और बानगंगा के संगम पर आज भी यह किला सुदृढ़ता पूर्वक विद्यमान है जो कि इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करता है। किन्तु वर्तमान में यहाँ ईसा की नवीं दसवीं शताब्दी से पहले का कोई चिन्ह नहीं पाया जाता । महमूद गज़नवी से (ईस्वी सन् १००६ से) पहले का इस किले का इतिहास उपलब्ध नहीं है। फिर भी महमूद इस किले पर चढ़ाई करके यहाँ से प्रखूट धन-दौलत लूटकर अनगिनत ऊँटों पर लादकर गज़नी ले गया। इतिहासकार लिखता है कि इस बेशुमार धन-दौलत को ऊँटों की पीठे उठाने में असमर्थ हो गईं। बड़े-बड़े बर्तन भी उसे पूरा भर लेने में असमर्थ हो गए। लेखकों के पास इस संख्या को लिखने में लेखनी असमर्थ हो गई और गणित के सारे अंक भी इस की संख्या लिखने में असमर्थ रहे। फिर भी जो कुछ थोड़ा बहुत लिखा जा सकता है उसे लिखने का दुसाहस मात्र किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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