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________________ काश्मीर में जैनधर्म १३७ चङ कुण नामक तुखार निवासी मंत्री ने तुखार में एक विशाल जैनस्तूप का निर्माण कराया था जिस का उल्लेख हम यहां करते हैं। (७) चङ् कुण मंत्री-यह भी जैनधर्मानुयायी था। इसने तुखारमें जैनमंदिर बनवाया था। तुःखाराश्चंकुण चक्र, स चंकुगविहार कृतः । . भूपचित्तोनतं स्तूपं जिनान्हे ममयास्तथा ॥ ४:२११॥ अर्थात्-तुखार निवासी चंकुण नाम के मंत्री ने चंकुणविहार का निर्माण कराया। उस में अपने (स्वामी राजा ललितादित्य) भूप की इच्छानुकूल एक उन्नत जैनस्तूप का निर्माण कराकर उस में जिनेन्द्र भगवान की स्वर्णमयी प्रतिमाओं की स्थापना की। (८) राजा कय्य-श्री कय्य राजा भी जैनधर्मानुयायी था। __ श्रीमान् क्य्य-विहारोऽपि तेनैव विदधेऽद्भुतम् । दिक्ष : सर्वज्ञमित्रो, ऽभूत क्रमाद्यत्र जिनोपमः ॥४:२१०॥ अर्थात्-(लाढ देश के मांडलीक राजा) श्रीमान् कय्य राजा ने कय्यस्वामी का एक अद्भुत जैनमंदिर बनवाया, उस में जिनेन्द्रप्रभु के समान तेजस्वी सर्वज्ञमित्र नाम का एक जैनभिक्ष रहता था ।(यहां कय्यस्वामी यानी राजा कय्य के इष्टदेव जिनेन्द्रप्रभु का राज्य-मंदिर) इस से स्पष्ट है कि यह भी जैनी था। (8) हम आगे लिखेंगे कि चन्द्रगुप्त मौर्य से लेकर उसकी पांचवी पीढ़ी के सम्राट संप्रति मौर्य (ईस्वी पूर्व ४ थी शताब्दी से ईस्वी पूर्व २ री शताब्दी) तक सब का राज्य प्रायः सारे भारत में था तथा भारत की सीमानों से बाहर के देशों में भी था। काश्मीर का भी बहुत भाग उन्हीं के अधिकार में था । ये सब सम्राट भी जैनधर्मानुयायी थे। इन्हों ने अपने-अपने राज्यकाल में काश्मीर में भी जैनमंदिरों का निर्माण तथा जैनधर्म का प्रचार किया था। (१०) भगवान पार्श्वनाथ का विहार भी काश्मीर तक हुआ था। मेजर जनरल फालांग का मत है कि पार्श्वनाथ काश्मीर में पधारे थे। (११) भगवान महावीर का काश्मीर में आगमन (श्रीमाल पुराण अ०७३ श्लो० २७-३०) महावीरो तपो तिष्ठत् बहुकाले गते सति । निराहारो जितात्मा च सर्व वस्त्रं त्यजेन्नृपः ॥२७॥ स्त्री-पुभेदादि रहितो परमरूपो भवेत्तदा। एवं च महावीरो महोग्न करो तपः ॥२८॥ तस्य तपः प्रभावेन किंचित् जैन प्रवर्तते । महावीरो यदा जातो, देशे काश्मीरके यदा ॥२६॥ तत: प्रभृती मारभ्य, जैनधर्मः प्रवर्तते । इदृशं जैनधर्म च वर्तते स्वल्प मात्रकम् ॥३०॥ अर्थात्--भगवान महावीर (दीक्षा लेकर) बहुत काल तक निराहार तप करते रहे फिर सब वस्त्रों का त्याग कर दिया। उस समय वह स्त्री-पुरुष के भेद से रहित होकर विचरणे लगे। इस प्रकार महा उग्रतप करते हुए जैनधर्म के प्रभाव को बढ़ाया। जब महावीर काश्मीर देश में गए तब वहां भी जैनधर्म का प्रवर्तन हुआ। इस प्रकार यहां जैनधर्म का विशेष रूप से प्रसार हुआ। (भगवान महावीर दीक्षा लेने के बहुत काल बाद उनके वस्त्रों का त्याग करने का इस श्रीमाल पुराण के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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