SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 12 ) जैन श्वेतांबर-दिगम्बर वांगमय का, वैदिक ब्राह्मणीय वेदों, पुराणों, स्मृतियों, उपनिषदों, बौद्धवांगमय भारतीय साहित्य एवं विदेशी, स्वदेशी लेखकों द्वारा लिखे गये इतिहास ग्रंथों, शिलालेखों, मूर्तिलेखों, पट्टावलियों, प्रशस्तियों, वंशावलियों, सिक्कों, स्तूपलेखों, ताम्रपत्रों, फरमानों आदि एवं खंडहरों से उपलब्ध नानाविध सामग्री के आधार से शोध-खोज पूर्वक इस इतिहास ग्रंथ को सत्य ऐतिहासिक दृष्टिकोण से तैयार किया है । यत्र-तत्र विखरी पड़ी जैन इतिहास की सामग्री का संकलन करने के लिये पटियाला, जम्मू, श्रीनगर (काश्मीर) प्रागरा, दिल्ली, होशियारपुर आदि अनेक वश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों तथा खानगी पुस्तकालयों में जाकर शोध कार्य करना पड़ा । अंबाला के श्री प्रात्मानंद जैन पुस्तकालय, दिल्ली दरियागंज में दिगम्बरी शोध संस्थान के वीरसेवा मंदिर तथा दिल्ली रूपनगर में सुरक्षित श्री वल्लभ स्मारक जैन शास्त्र भंडार के हस्तलिखित तथा प्रकाशित ग्रंथों के संदर्भो से, मासिक पत्र-पत्रिकाओं से सामग्री संकलित करने में सहयोग लिया गया। मात्र इतना ही नहीं अपितु श्रीनगर, चंडीगढ़, मथुरा, लखनऊ, कांगड़ा, कुरुक्षेत्र, होशियारपुर प्रादि अनेक स्थानों के सरकारी पुरातत्त्व संग्रहालयों, पानीपत, हिसार, पंजौर तथा पंजाब के अन्य स्थानों पर उत्खनन से प्राप्त पुरातत्त्व सामग्री को वहां जाकर अध्ययन से जो कुछ प्राप्त हो सका उसे शुद्ध ऐतिहासिक दृष्टि से, सांप्रदायिक आदि दृष्टिराग से मुक्त रहकर सत्य तक पहुंचने की मनोवृत्ति से, कदाग्रह के प्रभाव, यथासम्भव स्वतंत्र विचारधारा से इस ग्रंथ की रचना करने में पूरा-पूरा ध्यान रखा गया । इतिहास के कई गण्यमान्य विद्वानों का एतद विषय की जानकारी प्राप्त करने के लिये साक्षात्कार भी किया और पत्रों द्वारा जानकारी प्राप्त करने के प्रयास भी किये गये । क्योंकि दिगम्बर सम्प्रदाय का प्राचीन साहित्य पंजाब-सिंध आदि प्रदेशों में प्रचार और प्रसार के विषय में एकदम मौन है इसलिये उनके सत्य इतिहास को विशेष रूप से जानने के लिये दिगम्बर विद्वानों से भी पूछ-ताछ की गई परन्तु किसी के वहाँ से संतोष जनक कुछ भी प्राप्त न हो सका। पंजाब में विद्यमान स्थानकवासी कतिपय विद्वान साधुनों तथा प्रतिष्ठित, विद्वान श्रावकों को भी पत्रों से तथा साक्षात् भेंट करके भी उनके इतिहास के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिये कई बार प्रयास किये गये । परन्तु वहाँ से भी कुछ प्राप्त न हो पाया। अतः अपनी शोध-खोज से जो कुछ मिल पाया या जान पाया उसी के आधार से इस ग्रंथ का निर्माण किया है। पुस्तक प्रकाशन करने से पहले इतिहास के कतिपय जैन-जैनेतर स्कालर्ज को इसकी प्रेस कॉपी का अवलोकन भी कराया गया है । इस प्रकार इस इतिहास ग्रंथ को सब प्रकार से प्रौढ़ और समृद्ध बनाने के लिये प्रयास करने और लिखने में छह वर्ष व्यतीत करने पड़े हैं। इस ग्रंथ के सात अध्याय हैं-१. जैनधर्म की प्राचीनता और लोकमत, २. पंजाब में जैन धर्म, ३. जैनधर्म और शासक, ४. जैनधर्म के सम्प्रदाय, ५. जैन मंदिर संस्थाएं और साहित्य, ६. पंजाब में जैन क्रांति, ७. पंजाब में विद्यमान साधु-साध्वियों तथा ३ वक-श्राविकानों का परिचय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy