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________________ पंजाब में जैनधर्म १११ शिला और हस्तिनापुर के विवरण में लिखेंगे । श्रतः पंजाब में अर्हत् ऋषभदेव का श्रागमन अनेक बार हुआ होगा । केवलज्ञान के बाद भी यहां उन्हों ने श्रर्हत् (जैन) धर्म का प्रचार व प्रसार किया था । (७) सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ, सत्तरहवें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ, अठारहवें तीर्थंकर श्री अरनाथ का च्यवन, जन्म, चक्रवर्ती पद से राज्य, दीक्षा, तप तथा केवलज्ञान, चतुर्विधसंघ की स्थापना, गणधरों और गणों की स्थापना आदि सब कार्य हस्तिनापुर में हुए और इन तीनों ने निर्वाण प्राप्ति से पहले तक सर्वत्र धर्मप्रचार करते हुए पंजाब में भी विचरण किया इसका विवरण भी हम हस्तिनापुर के प्रसंग पर करेंगे । (८) उन्नीसवें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ, बीसवें तीर्थंकर श्री मुनि सुव्रतस्वामी, बाईसवे श्री अरिष्ट नेमि, तेइसवें श्री पार्श्वनाथ तथा महावीर प्रभु के पंजाब में धर्मप्रचार के लिए आने के उल्लेख मिलते हैं । एवं इनके पश्चात् श्राज तक भी जैन श्रमण, श्रमणियाँ सतत् जैनधर्म के प्रचार व प्रसार के लिए पंजाब को पावन करते आ रहे हैं । इससे स्पष्ट है कि पंजाब में वैदिक आर्यों के आने से पहले प्राग्वैदिक काल से श्री ऋषभदेव के समय से लेकर आज तक जैनधर्म विद्यमान चला श्रा रहा है । अब प्रदेशवार परिचय देते हैं । १ - गांधार और पुण्ड्र जनपद सिन्धु नदी र काबुल नदी के बीच का भूभाग गांधार (गंधार) देश के नाम से प्रख्यात था। गांधार का उल्लेख 'आदि पूर्व महाभारत में एक देश के लिए तथा " नीलमत पुराण" में भी ता है। १. गांधार, २. कपिशा, ३. वालहीक, एवं ४. कम्बोज महाजन- पद पाणिनी काल में भारत के उत्तर-पश्चिम में थे । १. कम्बोज काशगर के दक्षिण का प्रदेश था । २. हिन्दूकुश के दक्षिणपूर्व में गांधार प्रदेश था । ३. दक्षिण-पश्चिम में कपिशा था । ४. उत्तर-पश्चिम में वालहिक तथा उत्तर पूर्व में कम्बोज जनपद था । १--गांधार जनपद - समय-समय पर इस की राजधानियाँ और सीमाएं बदलती रहीं । गांधार जनपद को यूनानियों ने गदराई नाम दिया है । उस समय यह जनपद तक्षशिला से कूमड़ नदी तक विस्तृत था । पश्चिमी गांधार की राजधानी पुष्कलावती (पेशावर) थी। जैन शास्त्रों में इस जनपद का नाम बहली भी कहा है । बौद्ध ग्रंथों में भी गांधार देश का विशेष उल्लेख मिलता है । (१) एक समय सिंधु नदी से काबुल नदी तक का क्षेत्र, मुलतान और पेशावर इस गांधार मंडल में सम्मिलित थे । ( महाभारत की नामानुक्रमणिका के अनुसार ) । (२) फिर कम्बोज, भद्र, पश्चिमोत्तरीय प्रदेश, पेशावर, रावलपिंडी का जिला, तथा उत्तर पश्चिमी पंजाब का अंचल गांधार नाम से श्रभिहित होता था । (३) कनिष्क काश्मीर और गांधार दोनों में राज्य करता था । अतः उस समय इन दोनों देशों का निकट सम्बन्ध था । ( ४ ) काश्मीर निवासी कवि कल्हण की राजतरंगिनी ऐतिहासिक ग्रंथ में गांधार निवासी ब्राह्मणों की गणना अवमानित वर्ग में की है । (५) गांधार में पश्चिमी पंजाब और पूर्वी अफगानिस्तान सम्मिलित थे । इसकी सीमा प्राचीन www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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