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________________ ११० मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म धार्मिक कृत्य तथा जीवनचर्या बौद्ध भिक्षुषों से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं । भेद केवल इतना ही है कि उनके सिर पर छोटा सा बालों का जूड़ा होता है और वे प्रायः नग्न रहते हैं । जब कभी वे कपड़ा धारण करते हैं तो सफेद कपड़ा लेते हैं । उनको अन्य लोगों से पृथक करने के लिए यही छोटी-छोटी विशेषताएं हैं। उनके धर्म प्रवर्तक की प्रतिमा तथागत की प्रतिमा से मिलती-जुलती है । विशेषता मात्र इतनी ही है कि वे इसे कपड़े पहनाते (प्रांगी पूजा करते) हैं दूसरे लक्षण सब एक ही हैं । यहां जिन श्रमणों, श्रावकों तथा देवमन्दिरों मूर्तियों का यात्री ने वर्णन किया है वे श्वेताम्बर जैन परम्परा से मेल खाते हैं। जिस स्थान में इन मंदिरों के अवशेष मिले थे उस स्थान का नाम पाकिस्तान बनने से पहले मूर्ति ग्राम था । ___ इसी सिंहपुर में एक क्षीणकुल गोत्र क्षत्रीय रहता था। दरिद्रता के कारण वह गौए चरा कर कठिनता से परिवार का पालन पोषण कर पाता था। एकदा जैन मुनि के उपदेश से उस ने प्रति दिन नवकार मन्त्र और भक्तामर स्तोत्र के पाठ करने की प्रतिज्ञा ली। एक बार उसे स्वप्न में अष्टप्रातिहार्य सहित युगादिदेव श्री ऋषभदेव की प्रतिमा के दर्शन हुए। प्रातःकाल जब वह गौए चराने नदी किनारे गया तो वर्षा होने से धरती में से अष्टप्रातिहार्य सहित श्री ऋषभदेव प्रभु की प्रतिमा प्रगट हुई । उसने जहलम नदी के किनारे एक झोंपड़ी बनाकर प्रतिमा को स्थापित कर दिया और भक्ति से उसकी पूजा करने लगा। नवकार मंत्र तथा भक्तामर का जाप भी प्रतिदिन करता रहा । इस प्रकार छह मास बीत गए । एक दिन भक्तामर के ३१ वें श्लोक का जाप करते हुए ऋषभदेव की शासनदेवी चक्रेश्वरी ने प्रकट होकर इसे राज्य पाने का वरदान दिया। यहां के राजा की मृत्यु के बाद यह दारिद्र क्षत्रीय सिंहपुर का राजा बना । जीवन पर्यंत जिनप्रतिमा की पूजा करते हुए प्रात्म कल्याण किया । इससे यह स्पष्ट है कि पंजाब में जैनों के प्रथम तीर्थंकर की मान्यता और उपासना प्राग्वैदिक काल से ही रही है । अर्हत् ऋषभदेव ने स्वयं पंजाब में भी विचरण किया था इस के प्रमाण उपलब्ध हैं यथा (६) श्री ऋषभदेव ने अपने द्वितीय पुत्र बाहुबली को बहली-गांधार का राज्य दिया था इसकी राजधानी तक्षशिला थी। गाँधार देश की सीमा उस समय कहां तक थी इसको जानने के साधन उपलब्ध नहीं है । जैन वांगमय के अनुसार बाहुबली के समय एकदा छद्मस्थावस्था में भगवान ऋषभदेव तक्षशिला पधारे थे तथा इससे पहले बाहुबली के पुत्र सोमयश के राज्यकाल में हस्तिनापुर में भी पधारे थे, वहां आपने वर्षीतप का पारणा किया था। इन दोनों घटनाओं का विवरण क्रमशः तक्ष ट 1. सिंहपुर के खंडहरों में अधिक भूतियां होने के कारण इसका नाम मूर्ति ग्राम प्रसिद्ध हो गया होगा। 2. Sinhapur near morden katasraj Jehlum District Sir Aural Stien and then the principal Oriental College Lahore, personally visited the place in 1889 A. D. and discvered the remain of Sinhapur Jain Temple buried near Murti a village two miles from Katas and collected from excavation a huge mass of idols which were brought to Lahore in 26 camal loads and were depiuted in punjab control musium. (Jain Journel April 1969 p. 163) 3. भक्तामर श्लोक ३१ पर १६वीं कथा आचार्य गुणाकार सूरि कृत विवृत्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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