________________
पंजाब में जैनधर्म
१०६.
तीर्थ है। (नेमिनाथ बाईसवें तथा विमलनाथ १३ वें तीर्थंकर हैं ।
___सिंहपुरे पाताल लिंगाभिधः श्री नेमिनाथः" । अर्थात्-सिंहपुर में पाताल लिंग नामक (इन्द्र द्वारा निर्मित) श्री नेमिनाथ का महान् जैन तीर्थ हैं।
एलेग्जेंडर कनिंघम इस परिणाम पर पहुंचा था कि यह सिंहपुर प्राजकल कटास अथवा कटाक्ष जो जिला जेहलम में जेहलम नदी के किनारे पर है और सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान भी है उसके निकट होना चाहिए।
डा० बूल्हर की प्रेरणा से डा० स्टाईन ने सिंहपुर के उन जैन-मंदिरों का पता लगा लिया । डा० महोदय को मालूम हुआ कि कटाक्ष के दो मील के अन्तर पर मूर्ति नामक गांव में इन मन्दिरों के खण्डहर विद्यमान हैं। तब उसने वहां पहुंचकर झट खुदायी शुरू कर दी। बहुत सी जैन मूर्तियां और जैन मन्दिरों तथा स्तूपों के पत्थर प्राप्त हुए जो २६ ऊँटों पर लाद कर लाहौर लाए गए और वहां के सरकारी म्युजियम में सुरक्षित कर दिए गए।
हम लिख पाए हैं कि लिंग शब्द का अर्थ इन्द्र द्वारा निर्मित क्षेत्र अथवा तीर्थ है । इसलिए यहाँ इस तीर्थ का निर्माण प्रागैतिहासिक काल से होना निश्चित है । इसीलिए श्री जिनप्रभ सूरि ने इसे लिंग शब्द से संबोधित करते हुए यह संकेत किया है कि यह महातीर्थ अतिप्राचीन होने से लोगों में यह धारणा थी कि यह स्तूप और मन्दिर देवेन्द्रों द्वारा निर्माण किया गया है। श्री जिनप्रभ सूरि का स्वर्गवास विक्रम की १४ वीं शती का अंतिम चरण (वि० सं० १३६०) 4 में हना था। इससे स्पष्ट है कि जैनों का यह महातीर्थ विक्रम की पंद्रहवीं शताब्दी तक विद्यमान था। इस तीर्थ को ध्वंस कब और किसने किया इस के विषय में अनुमान होता है कि महात्याचारी मुसलमान सुलतान सिकन्दर बुतशिकन (मूर्तिभंजक) ने किया होगा । जिसका समय विक्रम सं० १३६३-१४१६ का है। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि इस धर्माध अत्याचारी ने अफगानिस्तान से लेकर काश्मीर तक तथा सारे पंजाब में देव-मन्दिरों का ध्वंस किया था और तलवार के ज़ोर से यहाँ के निवासियों को मुसलमान बनाया था ।
सिंहपुर के इस जैनतीर्थ का वर्णन करते हुए हुएनसाँग लिखता है कि इसके उपासक लोग भिन्न भिन्न दर्जे के हैं और इनके चरित्र सम्बन्धी नियम अपने अपने दर्जे के अनुसार होते हैं। उनके
1. अध्याय एक की टिप्पणी में हम लिंग शब्द के अर्थ के इन्द्र निर्मित तीर्थ क्षेत्र का खुलासा कर पाए हैं । 2. Gazetter of the Jehlum District Lahore 1904 p.p. 43-45 3. तीर्थकल्प ४६ पृ० ८५-८६ 4. जिन-शासन प्रभावक जिन-प्रभ और उनका साहित्य पृ०६१ 5. काश्मीर के इतिहास में इस अत्याचारी के विषय में विशेष वर्णन करेंगे। 6. हुएनसांग २६ बर्ष की आयु में ई० स० ६३० में भारत भ्रमण के लिए चीन से आया। उस समय भारत में
हर्ष का राज्य था। यह गांधार-देश की राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) में पाया । वहां से तक्षशिला गया। वहां से काश्मीर, पुछ, टक होता हुआ चन्द्रभागा (चनाब नदी) को पार कर जयपुर (जम्म) में पहुंचा। वहां से वह साकल-नगर (स्यालकोट) गया । टक की पूर्वी सीमा पर एक बड़े नगर में पहुंचा। वहां अधिकतर नास्तिक रहते थे। जालंधर से जगरधन मयात्री चार मास ठहरा । वहां से कुलूरह (कुलू) होता हुमा हुट सुताद्र नामक देश में गया । (हुएनसांग की भारत यात्रा नामक पुस्तक)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org