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________________ प्राचीन इतिहास जानने के साधन बड़ा परिश्रम और खर्चा भी करते हैं । मैं कुछ ऐसे सुझाव देता हूँ कि जिनके अनुसार चलने से बहुत सी बहुमूल्य बातें हाथ लग सकेंगी। जैन लोग पुरातत्त्व की खोज की ओर ध्यान दें और इस काम को अपने हाथ में लेकर धर्म और इतिहास की खोज की ओर विशेष लक्ष्य रखते हुए धन खर्च करे। आज तक जो इस विषय में उपेक्षावृत्ति जैनों की तरफ से रही है, इसी के कारण जैन इतिहास अपने असली स्वरूप में प्रकाश में नहीं लाया जा सका। यह कम खेद की बात नहीं है । पुरातत्त्वान्वेषक अधिकारी प्रायः जैनेतर हैं इस लिये उन्हें जैन इतिहास को प्रकाश में लाने में कोई दिलचस्पी नहीं है; यह बात स्वाभाविक है । अतः जैन समाज को इस कार्य के लिए स्वयं सजग होने की आवश्यकता है। ५. इस विषय में पांचवा नम्बर है पट्टावलियों का। पट्टावलियों में अधिकतर इतिहास जैनाचार्यों, उनके शिष्यों प्रशिष्यों का मिलता है। शायद कहीं कहीं उन श्रमणों के साथ सम्बन्ध रखने वाले गृहस्थों का इतिहास भी मिल जाता है किन्तु वह बहुत थोड़े प्रमाण में । फिर भी इतिहास के लिए पट्टावलियां बहुत उपयोगी साधन हैं। इन पट्टावलियों के अतिरिक्त कई प्राचार्यों के लिखे ग्रंथ भी इतिहास के उपयोगी साधन हैं । जैसे कि प्राचार्य हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र और परिशिष्ट पर्व ; प्राचार्य प्रभाचन्द्र सूरि कृत प्रभावक चरित्र, प्राचार्य मेरूतुंग सूरि कृत प्रबन्ध चिंतामणि, जिनप्रभ सूरि कृत विविध तीर्थ-कल्प, प्राचार्य कक्क सूरिकृत अभिनन्दन जीर्णोद्धार और उपकेशगच्छ चारित्र इत्यादि । ६. इतिहास के साधन के विषय में छठा नम्बर वंशावलियों का है। वंशावलियां जैनथर्म का, गृहस्थों और साधुओं का इतिहास जानने के लिये एक बहुत उपयोगी साधन है। कारण कि जैन गृहस्थों का मुख्य रूप से तथा जैनधर्म और जैन साधनों का गौण रूप से इतिहास जितना जैन वंशावलियों में मिलता है उतना अन्य कहीं उपलब्ध नहीं हैं । ७. सांतवाँ साधन संघ की तीर्थयात्राओं तथा व्यक्तिगत तीर्थयात्राओं के विवरणों के पत्र तथा विज्ञपियां हैं। इनसे तीर्थों, मंदिरों, जैनों के निवासस्थानों, व्यवसाय आदि का परिचय और इतिहास उपलब्ध होता हैं। ८. इसके सिवाय रासा, ढालें, चौपाइयां, सिलोको आदि अपभ्रंश तथा गजराती, हिन्दी आदि भाषा का साहित्य है। जिनमें प्राचीन अर्वाचीन महापुरुषों की जीवन घटनामों आदि का वर्णन मिलता है . ६. तथा राजा, महाराजा, बादशाहों आदि के दिये हुए फ़रमान (आज्ञापत्र), ताम्रपत्र, सनदें (प्रमाणपत्न) भी इतिहास के साधन हैं । . १०. साहित्य ग्रंथों के रचयिताओं की, लिपिकाओं आदि की प्रशस्तियाँ तथा चिट्ठी-पत्री और प्राचीन लिपियों, अनेक प्राचीन-अर्वाचीन देशी-विदेशी भाषाओं का ज्ञान एवं जैनागमों का गहन मार्मिक ज्ञान विशेष रूप से इतिहास की उपलब्धि के अचूक साधन हैं। इसलिये उपर्युक्त सामग्री जो जैनों के पास बची-खुची है, उसकी रक्षा करना यदि जैनसमाज सीख जाय तो उससे इतिहास के बहुत से अंगों की पूर्ति हो सकती है । यदि जैनसमाज इस बची-खुची सामग्री को भी अविवेक, स्वार्थ अथवा लापरवाही से खो बैठा तो इसका भयंकर परिणाम यह होगा कि जैनसमाज का भी संसार के इतिहास में केवल नाममात्र ही रह जायेगा । जो विद्वान जैन इतिहास की खोज अथवा लेखन कार्य कर रहे हैं अथवा करने का सामर्थ्य रखते हैं उनको तन-मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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