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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
जैसे जैनसाहित्य पर रोमांचकारी आत्याचार गुजरे हैं, वैसे ही जैन मंदिरों, मूर्तियों, स्मारकों, स्तूपों आदि पर भी कम जुलम नहीं ढाये गये । बड़े-बड़े जैन तीर्थ, मंदिर, स्मारक, स्तूप आदि मूर्ति भंजकों ने धराशायी कर दिए। जैन मूर्तियों के टूक-टूक कर दिए, उनपर अंकित लेखों (शिलालेखों) का भी सफाया कर दिया गया । स्तूपों और स्मारकों को तहस-नहस कर दिया, अनेक जैन मन्दिरों को हिन्दू और बौद्ध मन्दिरों में परिवर्तित कर लिया गया। हजारों मन्दिरों को तोड़फोड़ कर मस्जिदों में परिवर्तित कर लिया गया। दिल्ली की कुतुबमीनार, अजमेर का ढाई दिन का झोपड़ा आदि अनगिनत मुस्लिम ईमारतें और मस्जिदें जैनमन्दिरों के अवशेषों से ही निर्मित हैं । अनेक जैनमूर्तियों, मन्दिरों, गुफाओं, स्मारकों, शिलालेखों को बौद्धों का कह दिया गया । जो कुछ बच पाए उनका जीर्णोद्धार करते समय असावधानी, अविवेक और अज्ञानता के कारण उनके शिलालेखों, मूर्तिलेखों को चूना मिट्टी आदि से मिटा दिया गया । अनेक खंडित-अखंडित मूर्तियों को नदियों, कुओं, समुद्रों में डाल देने से हमारी ही नासमझी से प्राचीन सामग्री को हमारे ही हाथों से हानि पहुंचायी गयी । पूजा करनेवाले अविवेकी लोगों के हाथों ही प्रतिमाओं को प्रक्षालादि कराते समय बालाकूची से बेतहाशा रगड़ने से अनेक मूर्तिलेख घिस गए अनेक जैनमन्दिर, मूर्तियां अन्यमतियों के हाथों में चलेजाने से अथवा अन्य देवी-देवताओं के रूप में पूजे जाने के करण जैन इतिहास को बहुत क्षति पहुंची है । जैन समाज में ही मूर्तिपूजा विरोधी संप्रदायों द्वारा जैन तीर्थों, मन्दिरों, मूर्तियों को हानि पहुंचाने के कारण जैन इतिहास को कोई कम क्षति नहीं उठानी पड़ी। मात्र इतना ही नहीं श्वेताम्बर दिगम्बर मान्यता के भेद ने भी जैन इतिहास
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धुंधला बनाया है । पुरातत्व वेत्ताओं की अल्पज्ञता, पक्षपात, तथा उपेक्षा के कारण भी जैन पुरातत्व सामग्री को अन्य मतानुयायियों की मान कर जैन इतिहास से खिलवाड़ की गई है । विसेन्ट ए० स्मिथ एम० ए० का कहना है कि फिर भी निरन्तर शोध-खोज से प्राज भू-गर्भ से तथा इधर-उधर बिखरे पड़े थोड़े बहुत जो प्रमाण मिलते हैं, इन की खोज से इन में १५० वर्षों के इतिहास में ज्ञान की जितनी वृद्धि हुई है उस से जैनधर्म के इतिहास पर काफी प्रकाश पड़ा है ।
३ - प्राचीन इतिहास जानने के साधन
१ - पुरातत्त्व खोज के अनुसार लिखित कथानों और मौखिक कथाओं के प्रमाणों की मर्यादा भी निश्चित की गई है । उस की सहायता से विद्वान प्राचीन भारत का कथामय इतिहास लिखने को समर्थ हुए है ।
२. जैन मंदिर - मूर्तियां स्तूप - स्मारक प्रादि जैन इतिहास को जानने के अमोध साधन हैं । मूर्तियों पर अंकित लेख, शिलालेख प्राचीन इतिहास की उपलब्धि के अकाट्य प्रमाण हैं ।
३, जैनागम, उन पर चूर्णि निर्युक्ति, टीका, भाष्य आदि साहित्य भी इतिहास के मुख्य
हैं।
४. जमीन खोदने से जो सिक्के, ताम्रपत्र, शिलालेख, इमारतें, धर्मपुस्तकें, चित्र और बहुत तरह की मुफ़्तरिक बची खुची चीजें मिली हैं उनकी सहायता से हमने प्राचीन ग्रन्थों में लिखे हुए भारतीय इतिहास के ढांचे की पूर्ति की है । अपना ज्ञान जो पहले से अस्पष्ट था उसे शुद्ध बनाया है और काल-क्रम की मजबूत पद्धति की नींव डाली है ।
जैनों के अधिकार में बहुत बड़े-बड़े शास्त्र - भंडार, पुस्तकालय हैं, जिनकी रक्षा के लिये वे
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