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________________ परिशिष्ट (३) व्यक्तियों के शान्ति-विषयक विचारों के प्रति सहिष्णुता और भादर प्रदर्शित करते हुए उनके विचारों एवं दृष्टिकोण में समय और परिस्थिति के अनुसार सुधारात्मक परिवर्तन लाना। समस्त व्यावहारिक स्तरों पर हिंसा को नकारना एवं अहिंसा को स्वीकारना। (५) समस्त व्यक्तिगत स्तरों पर प्रतिरक्षा के अहिंसक तरीके अपनाना। (६) व्यक्तिगत स्तर पर आवश्यकताओं और उनके पूर्ति-साधनों का परिसीमन करना। व्यक्तियों की वेश-भूषा में सादगी और वातावरण में स्वच्छता उत्पन्न करना। (e) इस बात के लिए सतत् प्रयलशील रहना कि लोग अपने वार्तालाप के तौर-तरीकों में तथा आदतवश अश्लील या फूहड़ भाषा का प्रयोग न करें। (९) व्यक्ति कला,दस्तकारी, संगीत आदि को अभिरुचि (हॉबी) के रूप में अपनायें तथा विश्व स्तर पर अधिकाधिक संख्या में पत्र-मित्र बनायें और उनके साथ पत्र-व्यवहार में समय और साधनों का भरपूर उपयोग करें। (१०) लोगों में इस प्रकार का रुझान पैदा किया जाये कि वे सम्पादकों एवं लोकनायकों को बारंबार पत्र लिखकर हिंसा और अन्याय के मामलों में अपना दृष्टिकोण प्रकट करें और इस प्रकार शान्ति, अहिंसा और न्याय का मार्ग प्रशस्त करें। (११) व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में शान्ति,प्रेम, अहिंसा और उत्तम आचरण ___ का आदर्श प्रस्तुत करें। (१२) लोगों में ऐसी भावना भरी जाए कि वे अभावग्रस्त, दरिद्र और दलित वर्ग को सहायता, सहारा और समर्थन देने की दृढ़ प्रतिज्ञा करें तथा उनकी मौलिक आवश्यकतायें पूरी करने में उनको यथेष्ठ सहयोग दें। (१३) बन्धुआ मजदूरों एवं इसी तरह की छिपी हुई प्रच्छन सामाजिक बुराइयों का व्यक्तिगत स्तर पर पर्दाफाश करं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003163
Book TitleVishwashanti aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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