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________________ विश्व शान्ति और अहिंसा शस्त्रीकरण, युद्ध, निशस्त्रीकरण, युद्धवर्जना, शिक्षा, अर्थव्यवस्था ये सब सरकार के अधिकार क्षेत्र में है । जनता से इनका कोई संबंध नहीं है। सत्ता की कुर्सी पर बैठे लोग अहिंसा की बात को ध्यान से सुनें, ऐसा कम संभव है। हमें अपनी बात, अहिंसा की बात जनता तक पहुंचानी है। उस जनता तक जो शस्त्रीकरण या निःशस्त्रीकरण का निर्णय लेने वालों के भाग्य का निर्णय कर सकती है। इसके लिए गहन आस्था, तीव्र अध्यवसाय और सतत् साधना की जरूरत है। हमें विश्वास है कि अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति में इन सब का उदय होगा । १४ विश्व शांति और अहिंसा आज हम बहुत निकट आ गए है। दूरियां कम हो गई हैं। पहले हम व्यक्ति की बात सोचते थे, फिर समाज की। आजकल हम विश्व की बात सोचते हैं । यह क्रमिक विकास व्यक्ति से समाज और समाज से विश्व बहुत महत्त्वपूर्ण है। हम यथार्थ कोन भुलाएं। चेतना का केन्द्र भी व्यक्ति है। व्यक्ति की चेतना का केन्द्र भी व्यक्ति है और सामूहिक चेतना का केन्द्र भी व्यक्ति है। व्यक्ति की चेतना का परिष्कार किए बिना विश्व शांति का सपना पूर्ण नहीं हो सकता है। शांति की बात व्यवस्था के साथ चले तो व्यक्ति को गौण किया जा सकता है। व्यवस्था का कमजोर या शक्तिशाली पहलू है— नियंत्रण | उसके बिना व्यवस्था नहीं चलती है। नियंत्रण के साथ शांति की पौध पनप नहीं सकती । चाहे पहले करें या चाहे अन्त में, व्यक्ति-व्यक्ति में सामूहिक चेतना को जगाना ही विश्व शांति का मूल मंत्र है। इस सामूहिक चेतना का पुराना नाम समता की चेतना है । 1 1 नियंत्रण की अवधारणा के साथ सैनिक शासक और तानाशाह पनपते रहे हैं। हम राजतंत्र से लोकतंत्र तक पहुंचे हैं। इस विजययात्रा का मूल्य कम नहीं है। इससे अगली यात्रा शांतितंत्र की होनी चाहिए। लोकतंत्र में जो शासक आते हैं उनमें अहिंसा के प्रति आस्था जरूरी है। लोकतंत्र और अहिंसा में निकट संबंध है, पर आज लोकतंत्रीय शासन को भी तानाशाही के आस-पास पहुंचा दिया गया है। शांतितंत्र की प्रणाली लोकतंत्र से भिन्न नहीं होगी। किन्तु उसका शासक अहिंसा में आस्था रखने वाला हो-यह अनिवार्य शर्त होगी। अब राजनीतिक प्रणाली का प्रयाण लोकतंत्र से शांतितंत्र की दिशा में होना चाहिए। उसी अवस्था में हम विश्व शांति की कल्पना कर सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003163
Book TitleVishwashanti aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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