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विश्व शांति और अहिंसा
अहिंसा : विकास का व्यावहारिक कार्यक्रम
अनेक अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस विश्व शांति के लिए आयोजित हो रही है। कॉन्फ्रेंस से विश्व शांति हो जाए तो इससे बड़ा सहज सुलभ कोई वरदान नहीं हो सकता । सरकारें भी विश्व शांति के लिए कॉन्फ्रेंस आयोजित करती हैं और वे ही शस्त्रीकरण के लिए चुपचाप काम भी करती जाती हैं । यह दोहरा रूप एक भ्रांति पैदा कर रहा है । एक और शांति का प्रयत्न, दूसरी
ओर उसकी जड़ में प्रहार करने वाला शस्त्रों के विकास का प्रयत्न । किन्तु यह प्रयत्न सरकारी नहीं है। यह विश्व शांति के लिए जनता की आकांक्षा से निकला हुआ प्रयत्न है। जनता की आकांक्षा है-युद्ध न हो । उसकी आय से प्राप्त धनराशि का शस्त्रों के लिए प्रयोग न हो। इस आकांक्षा को सरकार पूरा नहीं करने देती । इस कॉन्फ्रेंस की निष्पत्ति जन-जागरण अभियान के रूप में होनी चाहिए।
आज अहिंसा का कोई शक्तिशाली मंच नहीं है । अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले लोग भी बिखरे हए हैं। उनमें न कोई संपर्क है और न एकत्व का भाव । परस्पर विरोधी विचार वाले राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्रसंघको एक मंच बना लिया। वहां बैठकर वे मिलते हैं, बातचीत करते हैं और समस्या का समाधान खोजते हैं । अहिंसा में आस्था रखने वाले न कभी मिलते हैं. न कभी बातचीत करते हैं और न कभी समस्या का सामूहिक समाधान खोजते हैं । इस कॉन्फ्रेंस से एक नई दिशा उद्घाटित हुई है । एक ऐसे विश्व-व्यापी अहिंसा मंच-अहिंसा सार्वभौम व पृष्ठभूमि तैयार हो, जहां बैठकर हिंसा की विभिन्न समस्याओं पर सामूहिक चिंतन किया जा सके और हिंसक घटनाओं की समाप्ति के लिए निर्णय लिए जा सकें। विश्व शांति की दिशा में यह एक शक्तिशाली चरण होगा।
अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले लोग अहिंसा की दृष्टि से प्रशिक्षित भी कम हैं और उसके लिए जितनी साधना चाहिए, वह भी प्रतीत नहीं होती । इस कमी की पूर्ति के लिए भी एक कार्यक्रम बनाना चाहिए, जिससे तपे हुए कार्यकर्ता इस क्षेत्र में आएं और अहिंसा की बात जन-जन तक पहुंचाएं।
शांति सेना का यत्र-तत्र निर्माण हुआ है । किन्तु व्यापक स्तर पर उसका निर्माण नहीं हुआ है। समर्थ शांति सेना के निर्माण की संभावना पर चिंतन किया जाए।
अहिंसा का यह त्रिसूत्री कार्यक्रम विश्व शांति के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है। यह हमारे चिंतन का केन्द्रीय बिन्दु बनना चाहिए।
दिनांक ५ से ७ दिसम्बर १९८८ को “शांति एवं अहिंसक उपक्रम” पर लाडनूं में आयोजित प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रदत्त गणाधिपति श्री तुलसी का वक्तव्य ।
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