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________________ विश्व शांति और अहिंसा जिम्मेवार है । अहिंसा के लिए संतुलित व्यक्तित्व का विकास बहुत जरूरी है। हमारी शिक्षा पद्धति में बौद्धिक और भावनात्मक विकास का संतुलन बने तब हिंसा की समस्या को सुलझाने में हमें सुविधा होगी। मस्तिष्क के बाएं पटल के साथ दाएं पटल को भी जागृत किया जाए तो अहिंसा के लिए एक उर्वरा भूमि बन जाती है। उसमें अहिंसा का बीज आसानी से बोया जा सकता है और उसके अंकुरण की आशा की जा सकती है। अहिंसा और संकल्प शक्ति . कोई व्यक्ति हिंसा क्यों कर रहा है? अहिंसक के सामने यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमें चेतना के सूक्ष्म-स्तर (अनकोंसियस माइण्ड) तक जाना जरूरी है। वहां एक अविरति,मनोविज्ञान की भाषा में अव्यक्त इच्छा काम कर रही है। वह हिंसा के लिए अभिप्रेरणा बनी हुई है। उस पर नियंत्रण संकल्प-शक्ति या व्रत-शक्ति के विकास द्वारा ही किया जा सकता है । इसके लिए अणुव्रत का अभियान चलाया जा रहा है। मनुष्य के अचेतन मन में अहंकार है। इसलिए वह अपने आपको सर्वोच्च और दूसरों को हीन देखने में रस लेता है । रंग-भेद और जाति-भेद की समस्या उसी अहंकार से जुड़ी हुई है। आग्रह का भी अहंकार से संबंध है। यही सांप्रदायिक समस्या का मूल बीज है । अणुव्रत आन्दोलन का एक व्रत है मैं मानवीय एकता में विश्वास करूंगा--जाति,रंग आदि के आधार पर किसी को ऊंच-नीच नहीं मानूंगा, अस्पृश्यता नहीं मानूंगा।" अहिंसा के विकास के लिए हमारी दृष्टि यह है कि हम केवल हिंसा की वर्तमान घटनाओं के प्रति ही सचेत न रहें किन्तु उन घटनाओं को जन्म देने वाली मूलवृत्ति के प्रति भी सचेत बनें । हिंसा की वर्तमान समस्याओं के लिए निःशस्त्रीकरण का और युद्धवर्जन की दिशा में काम करना जरूरी है। किन्तु यह बहुत अपर्याप्त है। यह ठीक वैसा ही है कि आग लगी और बुझा दी जाए । फिर आग लगी और बुझा दी जाए। आग क्यों लगती है-इसकी खोज न की जाए। आग को बुझाना और आग क्यों लगती है, इस कारण को खोजना समग्रता के लिए ये दोनों बातें जरूरी हैं । हिंसा की वर्तमान समस्या का समाधान करना और उसके मूल स्त्रोत का परिष्कार करना-वे दोनों काम जरूरी हैं। अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का ध्यान जितना वर्तमान समस्या को सुलझाने के प्रति है उतना मूल स्रोत के परिष्कार के प्रति नहीं है। हमारी दृष्टि में अहिंसा के विकास में यह बहत बड़ी बाधा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003163
Book TitleVishwashanti aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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