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________________ विश्व शान्ति और अहिंसा घूमता हुआ एक बुढ़िया के घर में पहुंचा। बुढ़िया ने उसका आतिथ्य किया और भोजन के लिए खिचड़ी परोसी। छद्मवेशी चाणक्य ने उसके बीच में हाथ डाला। खिचड़ी गर्म थी। हाथ जल गया। बुढ़िया बोली-तू भी चाणक्य जैसा मूर्ख लगता है। “कैसे मां"-छद्मवेशी चाणक्य ने पूछा । बुढ़िया बोली-चाणक्य अपनी छोटी-सी सेना को लेकर सीधा नंदवंश की राजधानी पर आक्रमण करता है। नंद साम्राज्य की विशाल सेना उसे परास्त कर देती है। यह मुर्खता ही तो है। यदि तू किनारे से खिचड़ी खाता तो धीरे-धीरे बीच की भी ठंडी हो जाती । तेरा हाथ नहीं जलता। चाणक्य ने एक बोध-पाठ पढ़ा, बुढ़िया से। पहले गांवों और कस्बों को जीता। अपनी शक्ति बढ़ा ली। फिर राजधानी पर आक्रमण किया। नंद साम्राज्य का पतन हो गया। ___ हिंसा का साम्राज्य बहुत बड़ा है। उसकी सेना बहुत विशाल है। हम सीधा हिंसा के गढ़ पर आक्रमण करें तो सफल नहीं हो सकते । पहले जनता के मानस को बदलने का प्रयत्न करें। अहिंसा के प्रति आकर्षण पैदा हो । अहिंसा हमारे जीवन की सफलता और शांति का अनिवार्य अंग है, यह बात बचपन से ही मस्तिष्क में बैठ जाए। इसके लिए हमें अहिंसा विषयक मस्तिष्कीय प्रशिक्षण की पद्धति तैयार करनी होगी। हिंसा के लिए जो रसायन उत्तरदायी हैं,उन्हें बदलने की विधि का विकास करना है। हम केवल वाचिक चर्चा और सिद्धांत की प्रस्तुति कर हिंसा के साम्राज्य से लोहा नहीं ले सकते । उसके लिए हमें हृदय-परिवर्तन या ब्रेन-वाशिंग की पद्धति का सहारा लेना होगा। प्रेक्षाध्यान के अभ्यास और प्रयोग के द्वारा उन रसायनों में बदलाव लाया जा सकता है, जो हिंसा के लिए उत्तरदायी हैं। यह रासायनिक परिवर्तन अहिंसा के विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। अहिंसा और शिक्षा-पद्धति वर्तमान शिक्षा-पद्धति में बौद्धिक विकास पर अत्यधिक भार दिया गया है। आज के महाविद्यालय और विश्वविद्यालय से अच्छे-अच्छे प्राध्यापक, वैज्ञानिक विधिवेत्ता,प्रशासक,शिक्षाशास्त्री और व्यवसायी निकल रहे हैं। किन्तु उच्च कोटि का नैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं निकल रहा है। हमारा बायां मस्तिष्क बहुत सक्रिय हो गया है । मस्तिष्क का दायां पटल निष्क्रिय हो रहा है । इस असंतुलन ने पूरे व्यक्तित्व को असंतुलित बना दिया है। यह असंतुलित व्यक्तित्व हिंसा के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003163
Book TitleVishwashanti aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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