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अहिंसा के आधारभूत तत्त्व उनकी आस्था और लगन अदम्य हो तो एक न एक दिन राज्य सरकारों को उनकी बात पर ध्यान देने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है। सही बात यह है कि अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोग विश्वमंच पर ऐसे वातावरण का निर्माण करने में सफल नहीं हुए हैं जिससे वे राज्यसत्ता के शासक-वर्ग को प्रभावित कर सकें। हमें अहिंसा के मूलभूत आधार तत्त्वों को नहीं भुलाना चाहिए :
१. हम सब मनुष्य हैं। २. मनुष्य में विवेक-चेतना जागृत होती है। ३. लोभ, स्वार्थ आदि कारणों से उस विवेक-चेतना पर मूर्छा का आवरण
आता है। ४. उस मूर्छा के आवरण को हटाया जा सकता है। ५. जातीय, साम्प्रदायिक और राष्ट्रीय भेद-रेखाओं के नीचे जो अभेद है,
मौलिक एकता है,इसका अनुभव किया जा सकता है,कराया जा सकता
६. मनुष्य में अच्छाई के बीज हैं, उन्हें अंकुरित किया जा सकता है।
इन सबके लिए एक तीव्र प्रयल की जरूरत है। हमारे भीतर उस तीव्र प्रयल की अभीप्सा को जगा सकें तो अहिंसा का एक शक्तिशाली अत्र के रूप में प्रयोग किया जा सकेगा। यह अस्त्र संहारक नहीं होगा, मानव जाति के लिए बहुत कल्याणकारी होगा। इस कल्याणकारी उपक्रम की सफलता के लिए मैं आह्वान करता हूं कि अहिंसा की दिशा में सोचने वाले सब लोग एक मंच पर आएं और एक स्वर से बोलें। एक दिशा में उन सबके चरण आगे बढ़ें। इस मंगल-कामना के साथ अग्रिम सफलता के लिए मैं फिर शुभकामना करता हूं।
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'शान्ति एवं अहिंसक उपक्रम लाडन में आयोजित प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन, ५ से ७ दिसम्बर १९८८, में प्रदत्त गणाधिपति श्री तुलसी का उद्घाटन सत्र में उदोधन ।
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