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________________ आसन उपर्युक्त पवनमुक्तासन का विशिष्ट प्रकार है। इसे सामान्यतः सरलता से भी किया जा सकता है। भूमि पर सीधे लेटकर श्वास लेते हुए दोनों घुटनों को मोड़कर सीने से लगाएं। दोनों हाथों से बदलते हुए नाक का स्पर्श करें। श्वास को छोड़ते हुए गर्दन और पैरों को सीधा करें। यह पवन-मुक्तासन का सरल प्रकार है। समय- एक मिनट में एक बार करें। तीन से पांच आवृत्ति प्रतिदिन करें। अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाएं। अभ्यास की स्थिरता के पश्चात् घुटनों से नाक लगाकर रुकने के समय को तीस सैकण्ड तक बढ़ाया जा सकता है। जमीन से तीन अंगुल पैरों को ऊपर रखकर सौ तक गिनती गिनें। एक, दो मिनट अथवा सौ तक गिनती की जा सकती है। ___सावधानी और निषेध- गर्दन, मेरुदण्ड में दोष या विकृति हो तो प्रशिक्षक के निर्देश बिना पवनमुक्तासन न करें। पवनमुक्तासन बैठकर, खड़े रहकर भी किया जा सकता है। जिनके घुटनों में दर्द अथवा चोट आई हुई हो वे बैठकर अथवा लेटकर ही करें। खड़े रहकर पवनमुक्तासन करने के लिए एक पैर मोड़कर घुटने को सीने से लगाएं। लेटकर पवनमुक्तासन करते समय जमीन पर मोटी दरी अथवा कई तह की कम्बल होनी जरूरी है। अन्यथा मेरुदण्ड के मनकों पर खरोंच और रगड़ से नुकसान होने की संभावना रहती है। स्वास्थ्य पर प्रभाव- पवनमुक्तासन पूर्ण आसन है। यह शरीर के विभिन्न अवयव को प्रभावित करता है। विशेषतया पेट के अवयव इससे सकिय और व्यवस्थित होते हैं। वायु दोषों को दूर करने के लिए यह आसन उपयोगी है। पेट में गैस बनने, अम्लता को दूर करने में यह उपयोगी आसन है। कूल्हे के जोड़ों को शिथिल बनता है। पेट की मांसपेशियों को सक्रिय बनाता है। सीना और फेफड़े शक्तिशाली बनते हैं। कब्ज को ठीक करता है। अपान वायु की शुद्धि करता है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में वायु, पित्त और कफ होते हैं। ये तीनों शरीर में सम रहते हैं तब स्वास्थ्य ठीक रहता है। इनकी विकृति के साथ शरीर में दोष उत्पन्न होने लगता है। पवनमुक्तासन त्रिदोष का शमन करता है। वायु के दोष-डकार, हिचकियां, पेट का शूल एवं शरीर के जोड़ों के दर्द को ठीक करता ग्रन्थितंत्र पर प्रभाव- पवनमुक्तासन से प्रभावित होने वाली प्रमुख ग्रन्थियां हैं- क्लोम (पेन्क्रियाज), गोनाड्स, एड्रिनल, थाइमस, थाइराइड । क्लोम ग्रन्थि विशेष प्रभावित होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003162
Book TitleJivan Vigyana aur Jain Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size4 MB
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