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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
मस्तिष्क में अनेक केन्द्र हैं। बुद्धि का केन्द्र भिन्न है और चरित्र निर्माण का केन्द्र भिन्न है। मस्तिष्क-विद्या के आधार पर मस्तिष्क के केन्द्रों का निर्धारण भी कर लिया गया है कि कौन सा केन्द्र किसके लिए उत्तरदायी है। व्यक्ति के चरित्र का केन्द्र है हाइपोथेलेमस । रीजनिंग माइंड बौद्धिक विकास या विवेक के लिए जिम्मेदार है।
आदमी जानता है कि यह कार्य बुरा है, कलह करना, संघर्ष करना बुरा है, फिर भी वह कार्य करता है। वह जानता है, परिवार में कलह नहीं होना चाहिए, कोई भी सदस्य लड़े नहीं फिर भी कलह होते हैं, लड़ाइयां होती हैं। व्यक्ति को इसमें रस आता है। यह है संवेग और विवेक का संघर्ष | यह रीजनिंग माइंड और इमोशन का संघर्ष है। रीजनिंग माइंड कहता है, ऐसा नहीं करना चाहिए, यह जीवन के लिए अच्छा नहीं है किन्तु इमोशन का दवाब पड़ता है जादमी वैसा कर लेता है, जानबूझ कर लेता है। यह बहुत बड़ा संघर्ष
शिक्षा का उददेश्य है कि विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास हो। इसके लिए मस्तिष्क के उन सभी केन्द्रों को सक्रिय करना होगा जो उन उन गुणों के मूल स्रोत हैं । जब कुछ केन्द्र सोए रहते हैं और कुछ जागृत हो जाते हैं, तब सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। सर्वांगीण विकास में यह माना जाता है कि व्यक्ति का शरीर स्वस्थ हो, मन संतुलित हो, बुद्धि विकसित हो और भावना शुद्ध हो। इन चारों के संतुलित विकास को सर्वांगीण विकास कहा जा सकता है। एकांगी विकास में समस्याएं अधिक उभरती हैं। एकांगी विकास चाहे धर्म का हो या बुद्धि का हो, उससे समाज- व्यवस्था नहीं चल सकती। धर्म या अध्यात्म के एकांगी विकास से कोई गुफा में बैठकर साधना तो कर सकता है पर समाज- व्यवस्था को नहीं चला सकता। समाज के व्यवरिथत संचालन के लिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-ये चारों पुरुषार्थ अपेक्षित माने जाते हैं। धर्म और मोक्ष को नहीं छोड़ा जा सकता तो अर्थ और काम की उपेक्षा भी नहीं की जा सकती। समाज में सबकी अपेक्षा है। इनका संतुलन चाहिए। एकांगी धार्मिक विकास भी कभी कभी अंधविश्वास में बदल जाता है। चारों का समन्वित
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