________________
जीवन-विज्ञान और मस्तिष्क प्रशिक्षण
1
शिक्षा प्रणाली में बौद्धिक विकास पर बहुत बल दिया जा रहा है। विकास चाहे बौद्धिक हो या चारित्रिक, सबका आधार बनता है मस्तिष्क । हमारे स्वभाव, व्यवहार और बुद्धि का नियंत्रण मस्तिष्क से होता है और फिर उसकी कुछ सहयोगी क्रियाएं (रिफ्लेक्स एक्टीविटी) होती हैं तो रीढ़ की हड्डी आदि उसमें सहभागी बनते हैं। परन्तु सबका मूल आधार है मस्तिष्क । मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना बहुत आवश्यक है । जिस समाज व्यवस्था के साथ आदमी जीता है, उस समाज व्यवस्था के अनुरूप मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना अत्यन्त अनिवार्य हो जाता है, अन्यथा समाज व्यवस्था और शिक्षा के बीच कोई संवादिता स्थापित नहीं की जा सकती। समाज व्यवस्था और शिक्षा के बीच कोई सामंजस्य या सामरस्य नहीं होता है तो शिक्षा की सार्थकता भी उतनी नहीं रहती । समाज व्यवस्था के अनुरूप शिक्षा का तंत्र होना चाहिए और शिक्षा के द्वारा समाज व्यवस्था लाभान्वित होनी चाहिए। यह संबंध बहुत आवश्यक है। आज समाजवादी समाजव्यवस्था और जनतंत्र चल रहा है । जो समाजवाद और जनतंत्र की अपेक्षाएं हैं, वे यदि शिक्षा के द्वारा पूरी नहीं होती हैं तो फिर दोनों के बीच कोई तालमेल नहीं बैठ सकता । शिक्षा का एक स्वतंत्र तंत्र बन जाता है और समाज- व्यवस्था कहीं अलग-थलग चली जाती है। ऐसी स्थिति में समाज के लिए शिक्षा नहीं होती और शिक्षा के लिए समाज नहीं होता । अतः यह सोचना आवश्यक है कि शिक्षा के द्वारा किस प्रकार के व्यक्तित्व का निर्माण होगा और वह समाज के लिए कितना उपयोगी बन सकेगा।
--
जीवन - विज्ञान की प्रणाली संस्कार- परिवर्तन की प्रणाली है । यह बौद्धिक क्षमता और स्मृति की क्षमता को बढ़ाने वाली प्रणाली है, क्योंकि इसमें ग्रहण की अपेक्षा ग्रहण के मूल स्रोत पर अधिक ध्यान दिया गया है। व्यक्ति व्यक्ति में ग्रहणात्मक क्षमता का तारतम्य होता है । वह कितना रिसेप्टिव है, कितना ग्रहण करता है-इस पर विशेष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org