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परिवर्तन के हेतु : आलंबल और विश्वास
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है अनुभूति का स्तर । ज्ञान के स्तर पर आदमी जान लेता है। अनुभूति के स्तर पर आदमी बदलता है। जब तक आदमी ज्ञान के स्तर पर रहता है तब तक उसका आचार-व्यवहार बदलता नहीं है। क्योंकि उसमें अनुभूति नहीं है । यह अनुभूति की चेतना बहुत महत्वपूर्ण है । यह बुद्धि से आगे की चेतना है। इसको जगाना ही अभ्यास का काम है ।
रूपान्तरण की प्रक्रिया के ये तीन घटक हैं- १. उपाय की खोज । २. आलंबन ३. अभ्यास। जहां ये तीनों मिलते हैं वहां परिवर्तन में कोई संदेह नहीं रहता । किसान यह चिन्ता नहीं करता कि बीज बो रहा हूं, उगेगा या नहीं? यदि साधन सामग्री पूरी है तो बीज अवश्य उगेगा। उगने का पूरा क्रम मिलता है तो वह उग जाता है और नहीं मिलता है तो वह नहीं उगता । सत्य का नियम सार्वभौमिक होता है। यह युनिवर्सल लॉ है। इसमें कोई अन्तर नहीं आता ।
उपाय, आलंबन और अभ्यास- ये तीनों जहां होते हैं, वहां परिवर्तन निश्चित है। इस प्रक्रिया से आदमी स्वयं ढल सकता है और दूसरों को ढाल सकता है। उपाय की खोज स्व- बुद्धि से भी हो सकती है और दूसरों के सहयोग से भी हो सकती है 1
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ईश्वर आलंबन नहीं है, वह मंजिल है। ईश्वर आदर्श है और आलंबन है भक्ति । हमें ईश्वर तक पहुंचना है। उसका माध्यम बनता है भक्ति । ईश्वर सहारा नहीं बनता, वह तो लक्ष्य है, जहां हमें पहुंचना है। आलंबन लक्ष्य नहीं बनता और लक्ष्य आलंबन नहीं बनता ।
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हम आलंबन का महत्त्व समझें और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में उसका सही उपयोग करें।
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