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________________ परिवर्तन के हेतु : आलंबल और विश्वास ८१ यह अभ्यास के द्वारा ही संभव हो सका। आदमी कितना ही बलिष्ठ क्यों न हो, वह सांड को नहीं उठा सकता। पर उपाय किया और आदमी ने सांड को उठा लिया। ___ अभ्यास के द्वारा ही संस्कार का निर्माण होता है। आचरण, व्यवहार और शब्द को बार बार दोहराने से वह संस्कार बन जाता है। अभ्यास के बिना संस्कार का निर्माण नहीं होता। अभ्यास को परिपक्व करने के लिए तीन तत्त्व अपेक्षित हैंदीर्घकालिता, निरंतरता और सत्कार- सेविता। अभ्यास को दीर्घकाल तक करते रहना चाहिए। दो- चार दिन करने से वह अभ्यास परिपक्व नहीं होता। दूसरी बात है कि अभ्यास निरंतर चलना चाहिए। दो दिन अभ्यास किया, चार दिन छोड़ दिया, फिर दस दिन किया, फिर बीस दिन छोड़ दिया-ऐसा करने से अभ्यास फलदायी नहीं होता। ठीक फ्रीक्वेन्सी के बिना उसमें शक्ति नहीं आती। इसके लिए निरंतरता अपेक्षित होती है। तीसरी बात है-सत्कार- सेविता । जो अभ्यास करना है उसके प्रति पूर्ण सत्कारभाव होना चाहिए, श्रद्धा होनी चाहिए। श्रद्धापूर्वक किया जाने वाला अभ्यास सही और फलदायी होगा। वृत्तियों और भावों के परिवर्तन के लिए जो उपाय या आलम्बन खोजे गये हैं, उनमें लक्ष्य तक पहुंचाने की क्षमता है। आलंबन कभी लक्ष्य तक नहीं पहुंचाता। वह माध्यम बनता है। पहुंचाता है व्यक्ति । वह आलंबन का समुचित सेवन करता है और पहुंच जाता है। यह सब व्यक्ति पर निर्भर करता है इसलिए उपाय और आलम्बन से भी अधिक शक्तिशाली साधन बन सकता है अभ्यास। अच्छे अच्छे सिद्धान्तों का अभ्यास नहीं होता है तो वे सिद्धान्त बहुत कारगर नहीं होते। अनेक लोग अहिंसा में विश्वास करते हैं। वे अहिंसा का संकल्प लेते हैं | संकल्प लेना एक बात है और अहिंसा को सिद्ध करना दूसरी बात है। संकल्प कर लिया कि मैं अहिंसक रहूंगा, हिंसा नहीं करूंगा। इतने मात्र से हिंसा रुक नहीं जाती, अहिंसा पक नहीं जाती। अहिंसा को पकाने के लिए बहुत अभ्यास अपेक्षित होता है। बिना तेज आंच के कुछ पकता नहीं । अहिंसा के संकल्प को परिपक्व करने के लिए दो सिद्धान्त हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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