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परिवर्तन के हेतु : आलंबल और विश्वास देना। इससे तुम्हें प्रचुर धन प्राप्त होगा।
महाकवि भारवी की मृत्यु हो गई। कुछ दिनों के पश्चात् कवि- पत्नी ने अर्थ का संकट महसूस किया। उसे श्लोक की बात याद आई।
उन्हीं दिनों एक धनिक वणिक- पुत्र ने एक बाजार लगाया। उसने यह घोषणा करवाई कि उस बाजार में जो वस्तु अनबिकी रह जायेगी, उसे वह स्वयं खरीद लेगा। कवि- पत्नी उस श्लोक को लेकर बाजार में गई और उसका मूल्य बीस सहस्र स्वर्णमुद्रा रखा। बाजार लगा। लोग आए। श्लोक का मूल्य देख स्तंभित रह गये। किसी ने श्लोक को खरीदने की उत्सुकता नहीं दिखाई।
बाजार का समय पूरा हुआ । वणिक-पुत्र के कर्मचारी वहां आए और जो वस्तुएं नहीं बिकी थीं, उनकी सूची तैयार करने लगे। श्लोक भी सूची में आ गया। उसका मूल्य सुनकर सब अवाक् रह गए। वणिक् पुत्र स्वयं वहां आया और अपनी वचनबद्धता के कारण बीस हजार स्वर्णमुद्रायें देकर उस श्लोक को खरीद लिया। श्लोक की बहुमूल्यता को ध्यान में रखकर उसने उस श्लोक को बड़े बड़े स्वर्ण अक्षरों में लिखवाकर अपने शयनकक्ष में टंगवा दिया।
एक बार उसे व्यापार के निमित्त सिंहल देश जाना पड़ा। उस समय उसकी पत्नी सगर्भा थी। उसने व्यापार किया किन्तु षड्यंत्रकारियों के एक षड्यंत्र में फंस गया। उसे वहां चौदह वर्ष की सजा मिली।
__ चौदह वर्ष पूरे हुए। उसने अपने देश की ओर प्रस्थान किया। मन उमंगों से भरा था। वह अपने गांव पहुंचा। वह अपने घर में चुपके से प्रवेश कर पत्नी को आश्चर्यचकित कर देना चाहता था। रात का समय। वह घर पहुंचा। खुले वातायन से देखा कि उसकी पत्नी एक युवक के साथ एक ही पलंग पर सो रही है। पत्नी का हाथ उस युवक के कंधों पर था। यह देखते ही वह आगबबूला हो गया। तत्काल उसने तलवार निकाली। वह पत्नी और उस युवक को मृत्युधाम पहुंचाना चाहता था। वह कमरे में गया। सहसा उसकी दृष्टि स्वर्णाक्षरों में लिखित उस श्लोक पर पड़ी, जिसे उसने बीस हजार स्वर्णमुद्राओं में खरीदा था। उसने मन ही मन उस श्लोक को पढ़ा
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