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________________ परिवर्तन के हेतु : आलंबन और अभ्यास परिवर्तन की बात सबको अच्छी लगती है। प्रत्येक व्यक्ति विकास चाहता है। विकास का अर्थ है-परिवर्तन, जो है उससे आगे बढ़ना। विकास के लिए कुछ उपाय चाहिए। उपाय के बिना विकास नहीं होता। जो उपाय को प्राप्त हो जाता है वह लक्ष्य तक पहुंच जाता है। जो निरुपाय होता है, वह जहां का तहां बैठा रह जाता है। सत्य की खोज के लिए सबसे बड़ा साधन है उपाय की खोज। आचार्य और शिक्षक वह होता है जो उपायज्ञ होता है, उपाय को जानता है। विश्व में सबसे महत्त्व की बात है-आलंबन की खोज। बदलने के लिए आलंबन आवश्यक होता है। विश्व साहित्य में सूक्तों का बहुत महत्त्व. रहा है। अनेक सूक्त अनेक व्यक्तियों के लिए आलंबन बने और उनके सहारे अनेक लोगों का कायापलट हो गया। एक एक शब्द ने, एक एक वाक्य ने, एक एक श्लोक ने जीवन को बदल दिया। सूक्तों का प्रयोग बहुत प्राचीनकाल से हो रहा है। भरत चक्रवर्ती रोज आलंबन का प्रयोग करते थे। वे अनासक्त थे। चक्रवर्ती हो और अनासक्त रहे, यह बहुत बड़ी बात थी। पर आलंबन के सहारे यह बात भी घटित हो गई। वे राज्य करते, पर राज्य का मोह उनको छू नहीं पाया। यही कारण था कि वे महल में बैठे बैठे केवली बन गए। उनका एक आलंबन- सूत्र था। जब मंगलपाठक उन्हें प्रातः जागृत करते तब वे कहते–'वर्धते भयं, वर्धते भयं-भय बढ़ रहा है, भय बढ़ रहा है। इसका तात्पर्यार्थ था कि राज्य बहुत बड़ी आसक्ति है। आसक्ति भय का कारण बनती है। इस एक सूक्त के आधार पर भरत चक्रवर्ती अनासक्त बने रहे। संस्कृत काव्य 'किरातार्जुनीय' के प्रणेता भारवी संस्कृत साहित्य के महान् कवि थे। जीवन की प्रारंभिक अवस्था में वे विपथगामी थे। मां द्वारा प्रतिबुद्ध होकर वे सत्पथ पर आ गए। मृत्यु से पूर्व महाकवि ने अपनी पत्नी को एक श्लोक देते हुए कहा-'मेरे मरने के बाद यदि तुम्हें आर्थिक- संकट का सामना करना पड़े तो इस श्लोक को बेच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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