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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
पर नियन्त्रण नहीं होता तब बहुत सारे बुरे परिणाम आते हैं। जीभ की संवेदनाओं पर नियन्त्रण न करने से अनेक बीमारियां होती हैं। लगभग पचास प्रतिशत बीमारियां जीभ की संवेदनाओं के कारण होती हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में भी यह बात पहले से ही मान्य थी, आज एलोपैथिक चिकित्सा- पद्धति में भी यह स्वीकृत हो गई है। हार्ट ट्रबल या ऐसी अन्य बीमारियों पर डॉक्टर सबसे पहले खाद्य पदार्थों पर प्रतिबन्ध लगाता है। वह कहता है-चिकनाई मत खाओ, घी मत खाओ, नशीली वस्तुओं का सेवन मत करो। बीमारी के साथ भोजन का गहरा संबंध है। भोजन का मानिसक शक्ति के साथ गहरा संबंध है।
दृष्टि का संवेदन है देखना। यह भी एक समझने की बात है कि कब देखना चाहिए? क्या देखना चाहिए? आंख के द्वारा पदार्थ के साथ हमारा सम्पर्क स्थापित होता है । हम केवल देखते ही नहीं, ग्रहण भी करते हैं। दृष्टि का संवेदन भावों को बहुत प्रभावित करता है। 'जो देखने योग्य नहीं है, उसे नहीं देखना चाहिए'-यह भारतीय चिन्तन की परम्परा रही है। कहा है-दृष्टिपूतं न्यसेत् पादम्-आंखों से देखकर चलो। यदि आदमी आंखों से देखकर चलता है तो शक्तियां कम क्षीण होती हैं। यदि चलते समय कभी इधर और कभी उधर देखते हैं, दूर तक देखते हैं तो मस्तिष्क की बहुत शक्ति क्षीण होती है। देखने का नियम है कि सीधे देखो, दाएं-बाएं देखना उचित नहीं है। सीधे बैठकर पानी पीना चाहिए। टेढ़े-मेढ़े देखते हए पानी पीने से शक्ति क्षीण होती है, प्राणधारा का प्रवाह बदल जाता है। जो व्यक्ति आगे बढ़ना चाहता है, उसे अपनी संवेदनाओं पर नियंत्रण करना होगा।
पिता ने तीनों पुत्रों को बुलाकर कहा-मैं प्रत्येक को हजार- हजार रुपये दे रहा हूं। तीन वर्षों तक तुम इनका उपयोग करना, फिर मुझे ये रुपये लौटा देना। तीनों ने स्वीकृति दी और रुपये लेकर चले गये। जो सबसे छोटा पुत्र था, वह संयमी था। उसने अपनी संवेदनाओं को नियंत्रित कर लिया था। उसने व्यवसाय प्रारंभ किया। संयम से रहने लगा। उसका व्यवसाय दिन-प्रतिदिन विकसित होता गया। दूसरा
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