________________
संवेद-नियंत्रण की पद्धति
मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। इसकी श्रेष्ठता का कारण है उसका मस्तिष्क और मेरुदण्ड प्रणाली-स्पाइनल कार्ड सिस्टम। यह उसकी अपनी विशेषता है। उस जैसा विकसित मस्तिष्क, नाड़ीतंत्र और मेरुदण्ड प्रणाली अन्य किसी प्राणी को प्राप्त नहीं है। यही कारण है कि वह प्रगति कर सकता है और सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। यदि आदमी मस्तिष्क की शक्ति का अपव्यय रोक देता है तो वह अपने जीवन में बहुत सफल हो सकता है। संवेदनाओं के कारण शक्ति का अपव्यय बहुत होता है। जब मस्तिष्क इन्द्रियों के साथ चलता है तब शक्तियां क्षीण होती हैं | जब मस्तिष्क इन्द्रियों से परे होता है तब शक्ति का अपव्यय रुक जाता है। आंखें खली हैं। आदमी इधर- उधर देख रहा है। वह नहीं जानता कि मस्तिष्क को कितना काम करना पड़ता है। पूरा तंत्र सक्रिय हो जाता है। उसे शक्तियां जगानी पड़ती हैं। निरन्तर क्रियाशीलता शक्ति का अपव्यय करती है। आदमी निरंतर सक्रिय रहता है। सामने कोई चीज आई, आदमी देखने लग जाता है। कुछ आवाज आई, वह सुनने लग जाता है। नाक, कान, आंख, जीभ और त्वचा-ये सारे इतने सक्रिय रहते हैं कि कभी विश्राम लेते ही नहीं। कभी एक संवेद आता है, कभी दूसरा । कभी कोई संवेद उभरता है, कभी कोई संवेद उभरता है, सक्रियता बनी रहती है। यह ध्रुव सिद्धांत है कि जहां क्रिया है, वहां शक्ति का व्यय है। जहां अक्रिया है वहां शक्ति का संरक्षण है। हम अतिक्रिया के कारण शक्ति का सही उपयोग नहीं कर पाते। जो अपनी शक्ति का आवश्यक कार्यों के लिए उपयोग करना चाहता है, आगे बढ़ना चाहता है, उसे संवेदों पर नियन्त्रण करना जरूरी है।
एक संन्यासी या तपस्वी के लिए संवेद-नियंत्रण करना आवश्यक कार्य है। उसे इन्द्रिय- संयम भी करना चाहिए। किन्तु न केवल संन्यासी को, जीवन में सफलता चाहने वाले सभी व्यक्तियों को, एक सीमा तक संवेदनाओं पर नियन्त्रण करना चाहिए। जब इंद्रिय-संवेदनाओं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org