________________
जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
फेक्टर हैं। मूल तत्त्व है नाड़ीतन्त्र और ग्रन्थितंत्र की सुरक्षा, व्यक्तित्व का निर्माण, अन्तःप्रज्ञा का निर्माण। इन सबका विकास होता है नाड़ीतंत्र और ग्रंथितंत्र की संतुलित अवस्था और निर्मलता के कारण। हमारा ध्यान इनकी ओर केन्द्रित होना चाहिए।
संवेग- परिष्कार के इन दो प्रयोगों के साथ तीसरा प्रयोग है-रंगों का ध्यान । अनुप्रेक्षाओं के साथ अनेक रंगों का ध्यान किया जाता है। रंग संवेगों के परिष्कार में बहुत सहायक होते हैं।
___एक विद्यार्थी अत्यन्त चंचल है। कहीं टिक नहीं पाता। उसे नीले रंग का ध्यान कराएं। एक सप्ताह के बाद उसमें परिवर्तन आने लगेगा। रूस में इस विषय पर अनुसंधान और प्रयोग किये गये। एक विद्यालय के विद्यार्थी बहुत उदंड और चंचल थे। अधिकारियों ने वैज्ञानिक दृष्टि से सब बातों पर ध्यान दिया। उन्होंने वैज्ञानिकों को आमंत्रित किया। वे आए। उन्होंने देखकर कहा-इस मकान की खिड़कियों, दरवाजों, कुर्सियों तथा फर्श पर बिछी कालीनों का रंग गहरा लाल है। इस लाल रंग के स्थान पर गुलाबी रंग कर दिया जाए । विद्यालय के अधिकारियों ने वैसा ही किया। खिड़कियों, दरवाजों आदि को गुलाबी रंग से रंग दिया। कुछ ही समय पश्चात् विद्यार्थियों में परिवर्तन आने लगा। उनकी उदंडता और चंचलता कम हो गई।
रंग बहुत प्रभावित करते हैं। यह निष्कर्ष निकाला गया कि यदि स्त्री को अच्छे मूड में रखना हो तो उसे गुलाबी रंग के वातावरण में रखा जाए। उसका मूड नहीं बिंगड़ेगा। बच्चों पर गुलाबी रंग का प्रभाव पड़ता है।
नीले, पीले और गुलाबी रंग का ध्यान संवेगों पर प्रभाव डालता है, उनका परिष्कार करता है। एक आस्था उत्पन्न करने की आवश्यकता है। एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के निर्माण की जरूरत है। हम इस बात को स्थूल दृष्टि से न पकड़ें कि गुलाबी रंग को देखने से क्या होगा? कैसे दिखेगा गुलाबी रंग ? यदि वैज्ञानिक दृष्टि से सोचेंगे तो हम अपने संकल्प के द्वारा वैसा रंग पैदा कर सकते हैं। रंग के परमाणु चारों ओर बिखरे पड़े हैं। जहां प्रकाश है, सूर्य की रश्मियां हैं, वहां चारों ओर रंग ही रंग है। पेड़-पौधों में रंग कहां से होता है? अंधेरे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org