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संवेग नियंत्रण की पद्धति . से छुटकारा पाया है। अनेक मद्यपायी और अन्यान्य मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले व्यक्ति अपनी आदतों को छोड़कर सुख से जीवन यापन कर रहे हैं। भय की समस्याओं से त्रस्त व्यक्ति इन प्रयोगों से भयमुक्त होकर आज अभय का जीवन जी रहे हैं।
जब संवेग परिष्कृत होते हैं, तब नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र का संतुलन बना रहता है। सामान्यतः हमारा यह विश्वास है कि संतुलित भोजन होता है तो जीवन अच्छा चलता हैं, शक्ति सही ढंग से काम करती है। यह गलत बात तो नहीं है, किन्तु इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि संतुलित भोजन होने पर भी यदि पाचनतंत्र संतुलित नहीं है तो भोजन अपना काम नहीं करेगा। जिसका पाचन ठीक नहीं है, वह कितना ही अच्छा खाता है, वह सारा व्यर्थ चला जाता है। प्रश्न होता है कि पाचनतंत्र को ठीक करना पहली बात है या संतुलित भोजन करना ? पहली बात है-पाचनतंत्र को स्वस्थ बनाना। दूसरी बात है-संतुलित भोजन करना। क्या ग्रन्थितन्त्र को स्वस्थ रखना पहली बात है या संतुलित भोजन करना ? पहली बात है-ग्रन्थितंत्र को ठीक रखना। दूसरी बात है--संतुलित भोजन करना । यदि ग्रंथितन्त्र संतुलित रहेगा, पैन्क्रियाज ठीक है तो चयापचय की क्रिया ठीक चलेगी, सारी क्रियाएं ठीक चलेंगी। यदि गोनाड्स अनुशासित और संतुलित है तो कामुकता नहीं सताएगी। ___जब शान्तिकेन्द्र सक्रिय होता है तो मनोबल बढ़ता है, घटता नहीं। वह व्यक्ति हर बात को सहन कर लेता है। उसमें सहने की शक्ति विकसित होती है। अन्यथा सुरूप और सुन्दर दीखने वाले व्यक्ति भी सामान्य परिस्थिति के समक्ष घुटने टेक देते हैं। शरीर से शक्तिशाली होने पर भी उनका मन कमजोर होता है। मनोबल उसका बढ़ता है जिसका ग्रंथितन्त्र संतुलित होता है। महात्मा गांधी का शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र था। पर उनका मनोबल इतना मजबूत था कि ब्रिटिश सरकार की सत्ता हिल उठी। यातनाएं गांधी को विचलित नहीं कर सकीं। इसका कारण यह है कि जिसका ग्रंथितंत्र और नाडीतंत्र शक्तिशाली होता है, वह व्यक्ति महान होता है, कुछ करने वाला होता है। मांस, हड्डियां, चमड़ी आदि का सीमित उपयोग है। ये सहायक
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