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जीवन विज्ञान: स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
ही ये प्रयोग कराएं जाएं तो उसमें संवेग संतुलन होगा, वह पारिवारिक और सामाजिक जीवन अच्छे ढंग से जी सकेगा। वह न अति कामुक और न अति चिड़चिड़ा होगा। उसमें न उदासी होगी और न वह अन्यमेत्तस्कता का शिकार ही होगा ।
आजे जेनेटिक इन्जीनियरिंग में यह चर्चा चल रही है कि कुछ दशकों के बाद यह स्थिति बन सकती है कि माता-पिता जैसा लड़का चाहेंगे वैसे लड़के का जीन उन्हें लेबोरेटरी से मिल जाएगा। वकील, डॉक्टर, दार्शनिक आदि की जीन खरीद सकेंगे और उन्हीं के अनुरूप बच्चा प्राप्त कर सकेंगे। यह कब संभव होगा, ऐसा निश्चित नहीं कहा जा सकता पर जीन के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों का यह अभ्युपगम है, कन्सेप्ट है और वे इसे सत्य करने में जुटे हुए
आज हम यह कह सकते हैं कि विद्यार्थी को बचपन से ही यदि संवेग - परिष्कार का अभ्यास कराया जाए तो माता- पिता की इच्छा को शिक्षक पूरा कर सकेगा। उन्हें एक अच्छा और सुसंस्कृत लड़का मिल जाएगा। यह कोरी कल्पना नहीं है, वैज्ञानिक बात है। आध्यात्मिक और वैज्ञानिक-इन दोनों दृष्टियों से यह प्रमाणित हो चुका है कि आदमी की आदतों को बदला जा सकता है। इसमें संदेह के लिए कोई स्थान ही नहीं है। संदेह अज्ञान के कारण होता है। कभी कभी आदमी इतना अज्ञान में होता है कि सचाई को नहीं समझ पाता । दो मित्र नदी पर घूमने गए। उनके मन में नौका विहार की भावना उठी। उन्होंने एक नौका किराए पर ली और बिना मल्लाह के नौका को लेकर चल पड़े। हलका सा तूफान आया और नौका डगमगाने लगी। उसके डूबने की नौबत आ गई। एक ने कहा- 'अरे! नौका तो डूब रही है।' दूसरा बोला- 'चिन्ता की क्या बात है । यह नौका अपनी तो है नहीं, किराए की है। डूबे तो भले ही डूबे।'
नौका किराए की हो सकती है पर डूबने वाले तो किराए के नहीं हैं? अज्ञान के कारण वे सचाई को नहीं पकड़ पाते ।
संवेग - परिष्कार के दोनों प्रयोग इस दिशा में अचूक प्रयोग हैं। इनके अभ्यास से अनेक क्रोधी और व्यसनी व्यक्तियों ने अपने संवेगों
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