________________
सा विद्या या विमुक्तये हमें एक सचाई पर ध्यान देना होगा। हम अनजान में गलतियां बहुत कम करते हैं। अधिकतर गलतियां जानते हुए ही होती हैं। अनजान में चलते चलते ठोकर लग सकती हैं, पर कोई आदमी आत्महत्या करने के लिए पांचवीं मंजिल से गिरेगा तो वह अनजान में नहीं गिरेगा। वह तो जानबूझकर ही गिरेगा। कभी चलते चलते दुर्घटना हो सकती है। पर रेल के सामने जाकर सोना अनजान में नहीं होता। आदमी जानबूझकर गलती क्यों करता है? वह गलती इसलिए करता है कि संवेग पर उसका नियंत्रण नहीं है। संवेग का जैसा दबाव होता है, वह वैसे ही करता है। शिक्षा के द्वारा क्या हम अज्ञान को मिटाने का ही प्रयत्न करें या संवेग पर नियंत्रण स्थापित करना भी सीखें? इसका उत्तर हमें खोजना होगा। यदि हम इस बिंदु पर ही अटके रह गए कि केवल अज्ञान को मिटाना है, बौद्धिक विकास करना है तो स्वस्थ समाज के निर्माण और समाज व्यवस्था के परिवर्तन की बात नहीं सोची जा सकती। चक्र जिस गति से चल रहा है, वह वैसे ही चलता रहेगा। आदमी ने राजतंत्र को बदला और उसके स्थान पर जनतंत्र ले आया। पर, हुआ क्या ? प्रणाली बदल गई पर आदमी तो नहीं बदला। जनतंत्र की प्रणाली में सत्ता पर बैठने वाला जानता है कि मैं स्थाई नहीं हूं, जन्मा शासक नहीं हूं। मुझे कोई पैतृक अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है। पर उसके मन में दूसरी भावना घर कर गई कि जितना अवकाश प्राप्त होता है उतना लाभ उठा लेना चाहिए। यही कारण है कि राजतंत्र में राजाओं का जो वैभव था, जो ठाटबाठ था, आज जनतंत्र के शासक का उससे कम नहीं है, उससे अधिक वैभव और ठाटबाट है। पहले छोटे छोटे राज्य होते थे, रियासतें होती थीं, सीमित आय और सीमित व्यय होता था। राजस्थान में कितनी रियासतें थीं? आज पूरा राजस्थान एक बड़ा प्रान्त (राज्य) बन गया। असीम शक्ति केन्द्रित हो गई। आज राजस्थान का जो शासक है, उसके हाथ में अपार शक्ति आ गई, जिसकी कल्पना छोटी छोटी रियासतें वाले राजा नहीं कर सकते। यह स्थानान्तरण तो हुआ, राजा के स्थान पर दूसरा जनतन्त्री शासक आ गया, पर रूपान्तरण नहीं हुआ। व्यवस्था का परिवर्तन तो हुआ, पर हृदय का परिवर्तन नहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org