SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सा विद्या या विमुक्तये हमें उस सचाई को खोजना है जिससे व्यक्ति और समाज का दुःख कम हो सके। पुरानी भाषा में इसे कहा-बंधन टूटे । भाषा का अन्तर हो सकता है, तात्पर्य दोनों का एक ही है। दुःख बंधन है, बंधन दुःख है। शिक्षाजगत् का प्रसिद्ध सूत्र है-'सा विद्या या विमुक्तये'- विद्या वही है जिससे मुक्ति सधे । मुक्ति के अर्थ को हमने एक सीमा में बांध दिया। हमने उसे मोक्ष के अर्थ में देखा। मोक्ष की बात बहुत आगे की है, मरने के बाद की है। जिसको जीते जी मुक्ति नहीं मिलती, उसको मरने के बाद भी मुक्ति नहीं मिल सकती। जब वर्तमान क्षण में मुक्ति मिलती है तो वह आगे भी मिल सकती है। जो वर्तमान क्षण में बंधा रहता है, उसे आगे मुक्ति मिलेगी, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती। मुक्ति का एक व्यापक संदर्भ है। हमें उसे समझना है। उसे समझ लेने पर हमारा दृष्टिकोण बहुत कार्यकर होगा। __ शिक्षा के क्षेत्र में मुक्ति का पहला अर्थ है--अज्ञान से मुक्त होना । अज्ञान बहुत बड़ा बंधन है! अज्ञान के कारण ही व्यक्ति अनेक अनर्थ करता है। इसे आवरण माना गया है। आवरण बंधन है। शिक्षा का पहला काम है-इस बंधन से मुक्ति दिलाना, अज्ञान से मुक्ति फरना। इस परिप्रेक्ष्य में हम कहेंगे--'सा विद्या या विमुक्तये'--शिक्षा वह है जो अज्ञान से मुक्त करती है। मुक्ति का दूसरा संदर्भ होगा-संवेगों के अतिरेक से मुक्ति । आदमी में संवेग का अतिरेक होता है और वह आदमी को पकड़ लेता है, आसानी से नहीं छूटता। जब तक व्यक्ति पोतराग अवस्था को प्राप्त नहीं हो जाता तब तक वह संवेगों से पूर्णरूपेण छुटकारा नहीं पा सकता। संवेगों के अतिरेक के कारण आदमी न परिवार में, न समाज में और न गांव में फिट हो सकता है। वह दूसरों के लिए सिरदर्द बन जाता है। ऐसी स्थिति में यह स्वयं प्राप्त होता है कि शिक्षा उसे संवेग के अतिरेक से मुक्ति दिलाए। इसका अर्थ है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy