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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प कल्याण हो सकता है। जड़ की बात को पकड़ना बहुत जरूरी है। प्रायः लोग पत्तियों की कांट-छांट कर संतोष कर लेते हैं। पतझड़ आता है, पत्तियां झड़ जाती हैं। बसंत आता है। पतझड़ और बसंत-यह कोई बड़ा परिवर्तन नहीं है।
यदि दृश्य को, समाज को, स्वच्छ और अच्छा बनाना है, व्यसन- मुक्त और अपराध मुक्त बनाना है तो शिक्षा के साथ संवेग- परिष्कार की बात को जोड़ना होगा। इसके सिवाय कोई विकल्प नहीं है। आज का विद्यार्थी पचीस वर्ष तक पूरी उच्छृखलता में पनपता है। जब वह समाज में आता है तो उसकी अपराधी मनोवृत्ति से समाज के लोग चिन्तित हो जाते हैं। केवल बौद्धिक विकास के कारण वे विद्यार्थी शस्त्र- से बन जाते हैं। धार तेज है। जब धार तेज होगी तो वह काटेगी ही। जब शस्त्र तेज होगा तो वह अपना काम करेगा ही। एक बात है, शस्त्र बने, धार तेज हो, कोई चिन्ता नहीं है, पर उस पर खोल होना चाहिए। खड्ग हो और म्यान न हो तो वह स्वयं को ही काट देता है। बौद्धिक विकास बहुत जरूरी है, पर वह काटे नहीं। नैतिकता का उस पर खोल रहे, नियन्त्रण की क्षमता बढ़े। इस संतुलन की हम कल्पना करें। जीवन-विज्ञान से शिक्षा का क्षेत्र तेजस्वी बनेगा और नए व्यक्तियों का निर्माण होगा।
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