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________________ शिक्षा और जीवन मूल्य (२) स्थापित कर सकता है, वह कम पढ़ा-लिखा होने पर भी अधिक उपयोगी होता है। जो ऐसा नहीं कर सकता, वह कितना ही पढ़-लिख जाए उसका ज्ञान मूल्यहीन है। एक आदमी दूसरे आदमी से जुड़ता है, उसमें उसका व्यवहार मुख्य कारण बनता है, ज्ञान नहीं। यदि उसका व्यवहार मृदु और सौहार्दपूर्ण है तो वह सबका प्रिय बन जाता है। लोग उसके व्यवहार की प्रशंसा करेंगे, उसके ज्ञान को नहीं पूछेगे। आचरणमुक्त ज्ञान अत्यन्त खतरनाक होता है। इस खतरे को आज का मनुष्य भोग रहा है, फिर भी उसी बुद्धि और ज्ञान की पूजा की जा रही है, उसी को बढ़ाने का प्रयत्न हो रहा है। हमारा प्रारंभ अधिकार पक्ष से होता है। बच्चा अपने अस्तित्व को तृप्त करने के लिए प्रयत्न करता है। शिक्षा का काम है अधिकार पक्ष को सीमित कर दायित्व पक्ष को विकसित करना। जब दायित्व पक्ष विकसित नहीं होता और अधिकार पक्ष विकसित रहता है तो वह खतरनाक सिद्ध होता है। आज जो आर्थिक और सत्तागत समस्याएं हैं वे सारी अधिकार पक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। अधिकार पक्ष की मनोवृत्ति बचपन से ही शुरू हो जाती है और वह क्रमशः बढ़ती जाती है। जब सामाजिक और पारिवारिक दायित्व की चेतना नहीं जागती तब निरंकुश अधिकार पक्ष सारे चरित्र को ले डूबता है। शिक्षा का काम है-दायित्व की चेतना को जगाना। उस चेतना का जागरण धर्म या अध्यात्म की शिक्षा के बिना संभव नहीं है। इसके बिना वातावरण या परिस्थिति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की स्थिति नहीं बनती। अनेकान्त की पहली शर्त है-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के साथ सामंजस्य स्थापित करना । आज यह अध्ययन किया जा रहा है कि स्वभाव और चरित्र में क्या संबंध है? हमारे स्वभाव और चरित्र का संबंध वस्तु के साथ नहीं, क्षेत्र के साथ और विभिन्न अवस्थाओं के साथ है। वातावरण के साथ सामंजस्यपूर्ण स्थिति चारित्रिक विशेषता प्रदान करती है। जो व्यक्ति पढ़ा-लिखा होकर भी परिस्थिति और वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर सकता, वह चरित्रवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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