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________________ शिक्षा और जीवन-मूल्य (२) पानी में गंदगी हो तो उसे फिल्टर कर पीया जा सकता है। किन्तु पानी साफ नहीं है, इसलिए पानी पीना बंद नहीं किया जा सकता। यदि कोई पानी पीना छोड़ दे तो उसे तड़फ-तड़फ कर प्राण देना पड़ेगा। आज चिन्तन की जटिलता चल रही है इसलिए शिक्षा के साथ धर्म की बात को नहीं जोड़ा जा रहा है। धर्म के बिना चरित्र की कोई संभावना नहीं हो सकती। जब चरित्र नहीं है तो व्यक्तित्व का समग्र विकास नहीं हो सकता। भगवान महावीर ने व्यक्तियों को चार भागों में बांटा है१. ज्ञान- संपन्न किन्तु शील- संपन्न नहीं। २. शील- संपन्न किंतु ज्ञान- संपन्न नहीं। ३. ज्ञान- सम्पन्न भी, शील- सम्पन्न भी। ४. न ज्ञान- सम्पन्न और न शील- सम्पन्न । इनमें तीसरा विकल्प समग्र व्यक्तित्व का बोधक है। शिक्षा का उद्देश्य है-ऐसी चेतना का विकास जिससे ज्ञान और आचार- दोनों को बल मिले। बौद्धिक पाठ्यक्रम से ज्ञान बढ़ाया जा सकता है, अनेक विद्या- शाखाओं का अध्ययन कर ज्ञान को व्यापक बनाया जा सकता है, किन्तु उससे चरित्र का विकास नहीं हो सकता। चरित्र का विकास करना बुद्धि का काम नहीं है। यह दूसरी शक्ति का काम है। बुद्धि भी मस्तिष्क का कार्य है। चरित्र का विकास करना भी मस्तिष्क का कार्य है। पर इनके लिए सेन्टर भिन्न-भिन्न हैं। बद्धि का सेन्टर है-रीजनिंग माइन्ड और चरित्र-विकास का सेन्टर है-इमोशनल माइन्ड । इमोशनल माइन्ड में संवेगों पर नियन्त्रण करने के सेन्टर हैं। चरित्र-विकास के लिए नियन्त्रण की क्षमता को बढ़ाना आवश्यक है। मूल्य दो प्रकार के होते हैं-साध्यमूल्य और साधनमूल्य । नियन्त्रण साधन- मूल्य है। इसके द्वारा साध्य की दिशा में, समग्र व्यक्तित्व के विकास की दिशा में प्रगति की जा सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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