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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
स्पष्ट होगी और सामाजिक मूल्यों का सामंजस्य होगा।
मानसिक संतुलन और धैर्य-ये दो मानसिक मूल्य हैं । तनाव के कारण अनेक उपद्रव होते हैं। तनाव में मानसिक संतुलन अस्त- व्यस्त हो जाता है। संतुलन के अभाव में समस्याएं पैदा होती हैं । पारिवारिक कलह, सामाजिक संघर्ष आदि असंतुलन की देन हैं।
इस स्थिति में विद्यार्थी को मानसिक असंतुलन से होने वाली समस्याएं और परिणाम तथा मानसिक संतुलन से होने वाले लाभ का पूरा बोध कराना आवश्यक है। केवल बोध ही नहीं, उसे प्रयोगात्मक रूप से यह भी सिखाना जरूरी है कि मानसिक संतुलन कैसे प्राप्त किया जा सकता है। बोध और प्रयोग-दोनों आवश्यक हैं। इससे समाधान मिल सकता है।
मनोविज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में मानसिक संतुलन की चर्चाएं हुईं। वहां इसकी पूरी जानकारी प्राप्त है, पर प्रयोग वहां उपलब्ध नहीं हैं, इस दृष्टि से वह जानकारी अधूरी रह जाती है। जानकारी का अगला चरण है प्रयोग। दोनों पक्ष संयुक्त हैं। मानसिक संतुलन उपायों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है और वातावरण को अच्छा बनाया जा सकता है। कोई व्यक्ति अपने मानसिक स्वास्थ्य को नहीं बिगाड़ता है तो यह बहुत बड़ी बात है। मानसिक अस्वास्थ्य या असंतुलन के कारण ही सारी समस्याएं उभरती हैं।
आज की शिक्षा में ज्ञानात्मक पक्ष उजागर है, किन्तु प्रयोगात्मक पक्ष कमजोर है या है ही नहीं । इसलिए शिक्षा अधूरी है, लंगड़ी है। यदि उसे पूरी बनाना है तो दोनों पक्षों-बौद्धिक और प्रयोगात्मक की संयोजना करनी होगी। यही जीवन विज्ञान की प्रणाली है।
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