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शिक्षा और भावात्मक परिवर्तन लड़के ने कहा-मैं उपाय करता हूं। उसने गाय की आंखों पर हरे रंग का चश्मा लगा दिया। अब गाय को सूखा घास भी हरा दिखने लगा। वह चरने लगी। दूध बढ़ गया।
गाय में भावात्मक परिवर्तन हुआ। वह घास भी अधिक खाने लगी और दूध भी अधिक देने लगी।
__ हम बाह्य को जानना ज्यादा पसंद करते हैं। हमें तो कठपुतली ही दिखाई देती है, जो बोलती है, नाचती है, गाती है, खेलती है। उसको जो पर्दे के पीछे से संचालित कर रहा है, उस ओर ध्यान ही नहीं जाता। हमारे जीवन का संचालन भाव करते हैं, जो पर्दे के पीछे हैं। उनकी ओर हमारा ध्यान नहीं है। जब तक शिक्षा के साथ भाव- जगत् का संबंध नहीं जुड़ेगा तब तक न उपद्रव मिटेंगे, न हडतालें समाप्त होंगी और न अनुशासन आएगा। हम बुद्धि के शस्त्र को तेज करते जा रहे हैं। उसका काम है काटना । नंगी तलवार बहुत खतरनाक होती है। उसके लिए म्यान चाहिए। म्यान में पड़ी तलवार खतरनाक नहीं होती। बुद्धि को हमने नंगी तलवार तो बना डाला। अब उस पर ध्यान का खोल डालना आवश्यक है जिससे कि सीधा खतरा न हो। यह है भाव- जगत् की प्रक्रिया।
जीवन विज्ञान की चर्चा चल रही है। इसका अर्थ पूरी शिक्षा-प्रणाली को बदलना नहीं है, बौद्धिक विकास को अवरुद्ध करना नहीं है। बौद्धिक विकास जरूरी है। उसके बिना आदमी पशुता की ओर चला जाएगा। जीवन विज्ञान का अर्थ इतना ही है कि बौद्धिक विकास के साथ भावात्मक विकास का सन्तुलन हो । यह होने पर शिक्षा- प्रणाली का कार्य पूरा होता है।
___ भावात्मक विकास का एक पहलू है-नैतिक विकास । इसके दो रूप हैं-सामाजिक नैतिकता और वैयक्तिक नैतिकता। एक समाज या संस्था कुछ नियम, उपनियम बनाती है। यह ध्यान नहीं रखती कि व्यक्ति की वासना, वृत्तियां, संवेग कैसे हैं? विचार किए बिना वह नियम बना देती है। यह सामाजिक नैतिकता और अनुशासन है। साम्यवादी देश का एक नैतिक सूत्र बन गया है कि व्यक्तिगत स्वामित्व न हो। उसमें व्यक्तिगत वृत्तियों, वासनाओं और संवेगों का
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