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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
ध्यान नहीं रखा गया। आखिर व्यक्ति व्यक्ति होता है। उसमें वासना है, लोभ की वृत्ति है। उनकी उपेक्षा कर व्यक्तिगत स्वामित्व का नियंत्रण कर दिया। उसका परिणाम यह हुआ कि वह आर्थिक दौड़ में पिछड़ गया। इसमें व्यक्तिगत स्वार्थ अधिक हो जाता है, पुरुषार्थ कम हो जाता है। फलतः आर्थिक पिछड़ापन आ जाता है।
वैयक्तिक नैतिकता का अर्थ है- व्यक्तिगत संवेगों और वृत्तियों पर नियंत्रण करना।
शिक्षा के साथ दोनों प्रकार की नैतिकता का संबंध होता है। विद्यार्थी समाज में जीता है। उसे सामाजिक प्राणी बनना है। उसको समाज के नियमों को मानना है, राष्ट्र के नियमों का भी पालन करना है, क्योंकि वह राष्ट्र में रहता है। यदि शिक्षा के द्वारा उसकी यह मानसिकता नहीं बनती है तो वह अच्छा विद्यार्थी नहीं बन सकता। इससे भी अधिक जरूरी है संवेगों पर नियन्त्रण करना। यह नैतिकता का महत्त्वपूर्ण बिन्दु है। यह शिक्षा के साथ जुड़े।
शिक्षा के साथ मानसिक शक्ति के विकास की बात भी जड़ी होनी चाहिए। इस शक्ति का विकास जिस राष्ट्र, समाज या व्यक्ति में नहीं होता, वह कमजोर हो जाता है। आज के व्यक्ति में मनोबल का विकास और भावात्मक विकास-दोनों न्यून हैं। शिक्षाशास्त्री इनके विकास के लिए नई नई पद्धतियां प्रस्तुत कर रहे हैं। आज अपेक्षा है कि सामाजिक परिवेश बदले और वर्ग- संघर्ष, वैमनस्य आदि समस्याएं समाहित हों। इसके लिए भावात्मक विकास अपेक्षित है।
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