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________________ २० जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प बने। व्यक्ति इन्द्रिय और बुद्धि के स्तर पर नहीं चलता। वह चलता है भाव के स्तर पर। आदमी जो कुछ कर रहा है, उसका संचालन भीतर से हो रहा है। अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-'भगवान ! आदमी पाप करता है। उसका प्रेरक, प्रवर्तक कौन है?' कृष्ण ने कहा--'आदमी को पाप में प्रेरित करता है काम और क्रोध ।' ये निषेधात्मक भाव हैं। हम बुद्धि के स्तर पर समस्या को सुलझाना चाहते हैं। इसमें कोई संगति नहीं है। दर्शन पर यह आरोप लगाया गया कि वह जानने की प्रक्रिया है, बदलने की प्रक्रिया नहीं है। यह सचाई नहीं है। जैन साहित्य में शिक्षा का जो प्रारूप मिलता है, उसमें दो शब्द व्यवहृत हुए हैं-ग्रहण शिक्षा और आसेवन शिक्षा। शिक्षा ग्रहण करो और उसका प्रयोग करो। शिक्षा के साथ अभ्यास जुड़ा हुआ है। आज अभ्यास छूट गया, संवेग पर नियंत्रण की बात छुट गई और अतिरिक्त भार बौद्धिक विकास पर आ गया। ५.भावात्मक विकास आज अपेक्षा है कि शिक्षा के साथ भावात्मक विकास का क्रम जुड़े । इसके बिना हम जिस समाज की परिकल्पना करते हैं, वह कभी संभव नहीं है। बौद्धिक और आर्थिक विकास के साथ साथ अपराध, हिंसा, आक्रामकवृत्ति, आवेग, पारिवारिक कलह आदि बढ़ रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है? शिक्षा के द्वारा इन सब वृत्तियों में कमी आनी चाहिए पर आज ऐसा नहीं हो रहा है। आज के विकसित राष्ट्रों में अपराधों की बाढ़- सी आ रही है। पागलपन बढ़ रहे हैं। जहां शत-प्रतिशत लोग शिक्षित हैं, वहां भी ऐसा हो रहा है। आश्चर्य इस बात का है कि भारत की शिक्षा- प्रणाली भी बुद्धि तक सीमित है। यह बात हमने पहले ही समझ ली थी, लेकिन हम उसको नकारते चले जा रहे हैं, समस्या को स्वयं पैदा कर रहे हैं। जब तक भाव-जगत् में शिक्षा का प्रवेश नहीं होगा तब तक शिक्षा के द्वारा समाज को बदलने की संभावना नहीं की जा सकती। पिता पुत्र को दूध का गिलास पीने के लिए देता। गिलास तो वही, पर धीरे धीरे दूध कम होता गया। पुत्र ने दूध घटने की बात पूछी। पिता ने कहा-अकाल है। चरने के लिए घास नहीं मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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