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________________ १४ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प होती है जब बुराई प्रगट में होती है, पकड़ में आती है। भूमिगत आप कुछ भी करें, कानून को कोई आपत्ति नहीं होती। किसी ने बुराई की, अपराध किया, गवाह नहीं मिला तो वह अपराध से छूट जाएगा। कानून वहां पंगु बन जाता है। बुराई तभी मिट सकती है जब मन का कालापन मिटता है। मन के कालेपन को मिटाना शिक्षा का काम है। भगवान् महावीर ने श्रावक के लिए आचार- संहिता दी। उसका एक व्रत है-भोगोपभोग व्रत। इसका अर्थ है, भोग की सीमा करना। संपत्ति कितनी ही हो सकती है, पर वैयक्तिक भोग की सीमा वांछनीय विश्व के धनाढ्य व्यक्ति रोकफेलर की बेटी लंदन गई। वह बाजार में कुछ खरीदना चाहती थी। अनेक फोटोग्राफर साथ में हो गए। वह एक जूते की दुकान पर गई। चप्पल देखे। उनका मूल्य अधिक था। उसने कहा-मैं खरीद नहीं सकती, मूल्य अधिक है। पत्रकार साथ में था। उसने पूछा-'आप तो अरबपति की लाड़ली हैं, फिर पैसे की बात क्यों करती हैं? रोकफेलर का संस्थान लाखों-करोड़ों का दान करता है। इस स्थिति में आपकी बात समझ में नहीं आती। वह बोली-'मैं एक अरबपति की लड़की हूं| व्यापार में करोड़ों रुपये लग सकते हैं, पर हमारा व्यक्तिगत बजट बहुत कम है। हम अपने व्यक्तिगत उपभोग के लिए अधिक खर्च नहीं कर सकते। इस घटना के संदर्भ में मुझे भगवान् महावीर के द्वारा निर्धारित श्रावक आचार-संहिता के एक व्रत की स्मृति होती है। व्रत है-भोग- उपभोग की सीमा। भगवान महावीर का अनन्य श्रावक था आनन्द, करोड़ों करोड़ों का स्वामी। अपार संपदा, विस्तृत व्यवसाय, 'कुटुम्ब का अधिपति। पर उसका व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त सीधा और सादगीपूर्ण था। स्वयं के रहन-सहन और खान-पान पर बहुत सीमित व्यय होता था। संपदा के सीमाकरण की चेतना को जगाना शिक्षा का महत्त्वपूर्ण कार्य है। . स्वतंत्रता की चेतना भी शिक्षा के द्वारा जगाई जाती है। राष्ट्रीय स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं कि उस स्वतंत्रता के आधार पर व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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